आज स्वयं से मिल पाया मैं
बरसात को देख घबराया मैं
क्यों कर खफा हो जाता हूँ
थोड़ा थोड़ा समझ पाया मैं
खुद को समझ नहीं पाया मैं
कुछ मलिन देख घबराया मैं
कभी किसी को सुना ही नहीं
न खुद को कभी सुन पाया मैं
बहुत नितारा खुद विचारों को
नसीहतें देता था मैं हज़ारों को
स्वयं लागू नहीं कर पाया मैं
यह बात समझ नहीं पाया मैं
चिढ़ने की जो मेरी तमन्ना है
कई बार उस से टकराया मैं
हर बात पर चिढ़ मैं जाता हूँ
बस इतना ही समझ पाया मैं
एक सज्जन से मेरी बात हुई
तीखे अनुभव की बरसात हुई
उनकी प्रतिभा समझ पाया मैं
नए अनुभव को घर ले आया मैं
स्रोत पर सिर्फ एक काया है
कुछ कारण व भय समाया है
बाकी सब विवाद की उपज है
यह जान खुद से टकराया मैं
तुम अपने कारण की बात करो
दूसरों पर न कोई इलज़ाम मढ़ो
अपने भय को थोड़ा विश्राम दो
दूसरों की सुनो अपना ध्यान दो
सारा सुख इसी में तो समाया है
मुझे अब जाकर समझ आया है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Than you so much sir!
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteThank you so much for your comments! It inspires me. Gogia
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