तेरे बदन की ख़ुशबू जब फिज़ा में पसरती है
तू न मुझसे दूर, कहीं…दूर निकल जाया कर  
क़सम खुदा की कहीं कोई गुनाह न हो जाये 
तू मुस्कुरा, मग़र थोड़ी सी सम्भल जाया कर 
हम भी बेख़बर हो जाते हैं तुम्हें करीब पाकर 
करीब रहो, मग़र तू अपनापन न जताया कर 
तेरा बेवाक चले आना भी तो बहुत सुहाता है 
इतनी तहज़ीब के संग मेरे पास न आया कर 
तुम तो सदा मेरे अहसासों में बसी रहती हो 
बस केवल उनको ही अपना घर बनाया कर 
अपने घर में रहो शोख तितलियों की भांति 
दबे पाँव ख़िसक-ख़िसक के मत आया कर 
बिजली कड़कती है तो दिल थाम लेते हैं हम
तू अपने चेहरे से अपनी जुल्फें न हटाया कर 
तेरी राहों में हम एकदिन बेगुनाह मारे जायेंगे 
अपनी ज़ुल्फ़ों को हवा में यूँ न लहराया कर 
यह भी जानो कि मैं मौत से बहुत शर्मिंदा हूँ 
बस नज़रों के तीर मुझपर यूँ न चलाया कर
तेरी हर बात बेशक बिना शर्त मान लेता हूँ 
तू बात-बात पर शतरंज को न बिछाया कर  
बड़ा सकूँ मिलता है मुझे तेरी ग़ुलामी में बैठ 
बेशक़ सारी-सारी रात पाँव भी दबवाया कर 
तू तो नींद में भी बाकमाल हसीना लगती है 
बस नींद से परेशान होकर न उठ जाया कर 
'पाली' दीवाना है दीवाना रहेगा ताउम्र तेरा 
सच कहूँ तो तू इतनी न खिलखिलाया कर 
वरना बाँध लेंगे सदा के लिए तुझे बाहों में 
इस तरह चुपके से मेरे करीब न आया कर 
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

साहब क्या कहने अल्फ़ाज़ नही आप की तारीफ के लिये।
ReplyDeleteआपकी तारीफ़ के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteExcellent sir ji
ReplyDeleteWah gogia ji bahut khoob
ReplyDeleteExcellent sir ji
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteYour poem has a good description of a lover girlfriend.
ReplyDeleteYour poem has a good description of a lover girlfriend.
ReplyDeleteGreat creation
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