Thursday, 26 March 2020

A-504 कोरोना तांडव 25.3.2020-4.30 AM

आज पहली बार सुना हमने 
जिसमें कोई आवाज़ नहीं है 
चिड़ियों का चहचहाना देखा 
उसका कोई सुरताल नहीं है 

कोयल की कु-कू को देखा 
उसमें भी कोई अंगार नहीं है 
दिल में आया गाके उड़ गयी 
उसका जैसे घर-बार नहीं है 

कुत्ता भी अब किसपर भौंके 
दिखता अब किरदार नहीं है 
बिना नींद के वह भी न सोये 
लेकिन सच है बीमार नहीं है 

सकल सृष्टि खुशियां मनाये 
केवल इंसान हक़दार नहीं है 
हमने सबकुछ अपना बनाया 
सृष्टि का तो व्यापार नहीं है 

चींटी सहित हाथी को देखो 
क्या उनका परिवार नहीं है 
कितना देखो मिलजुल रहते 
क्या लगता कि प्यार नहीं है 

प्रदुषण भी कहाँ चला गया 
क्यों उसका आधार नहीं है 
जल में मछली सुन्दर उपवन 
क्या उसका अधिकार नहीं है  

क्यों न करे कोरोना तांडव 
जब सृष्टि से प्यार नहीं है 
सृष्टि ने इतना कुछ दिया 
और उसका आभार नहीं है 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Sunday, 8 March 2020

A-498 तमाशा 8.3.2020--9.29 PM

शहर में आग लगी और वो गुनगुना रहे हैं  
कुछ आंसू बहा रहे हैं कुछ मुस्कुरा रहे हैं  

यह कैसा रिश्ता मानव का जमहूरियत से 
किसी के पांव बेड़ी कुछ जश्न मना रहे हैं 

घर फूकने वाले आखिर क्या दिखा रहे हैं 
कि वो जीत गये या दूसरों को हरा रहे हैं 

जिनके घर आग लगी उनसे पूछो तो जरा 
उन पर हुए सितम से कितना कराह रहे हैं 

इंसान भी कितना अंधा हो चुका है नशे में  
अपने ही भाई का खून बहाते ही जा रहे हैं 
स्याह कालिख उड़कर जब पड़ी आँखों में 
राजनेता भी मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं 

मत कर मग़रूर तू किसी जाति के होने का 
जाति धर्म ही तो है जो मानवता खा रहे हैं 

जहर बना था इंसान को बचाने के लिए 
अब इंसान ही इंसानियत से टकरा रहे हैं 

तुम कब तक तमाशा देखते रहोगे 'पाली' 
सब अपना-अपना मतलब ही सधा रहे हैं 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Monday, 2 March 2020

A-463 वस्ल की रात 9.9.19--4.01 AM

कर ले जो तुमने करना है जोगी 
अब तुझमें वैसी वो बात न होगी 

जब बरसा करते थे बिन बारिश 
अब वैसी वस्ल की रात न होगी 
सावन की वर्षा होती थी सुहानी 
अब ऐसी कोई बरसात न होगी 

जिसमें भींगा करते थे दो ज़िस्म 
अब ऐसी वो मुलाक़ात न होगी 
बादल की गर्जन क्या देखते हो 
लिश्कारे वाली भी बात न होगी 

अँधेरे में रोशनी जज़्ब हुई जाये 
उसमें जज़्ब की वो बात न होगी 
छिपकर जिसका लेते थे चुम्बन 
अब वैसी कोई बदज़ात न होगी 

वट-वृक्ष के बीच ठंड संग रहना 
इतनी किसी की बिसात न होगी 
चाँदनी भी तुमको एक टुक देखे 
इस दृश्य की कोई बात न होगी 

कर ले जो तुमने करना है जोगी 
अब तुझमें वैसी वो बात न होगी 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Sunday, 1 March 2020

A-497 गुड़ की डली 2.3.2020--1.45 AM

गुड़ की डली ज्यादा मीठी है 
किसी भी मिठाई से 
माँ की ममता ज्यादा भली है 
किसी भी आई से 

माँ का प्यार कितना रूखा है  
बुरा हो पिटायी से 
कीमत नहीं चुका सकते तुम 
सारी उम्र की कमाई से 

बहनों का प्यार तुम मत आंको 
पता लगता है विदाई से 
जब कलाई सूनी रह जाती है 
झगड़ों की रहनुमाई से 

बेटी कोई पराया धन नहीं है 
न जानो उसे जमाई से 
मान सम्मान इसका अपना है 
न बाँधो किसी कसाई से 

ब्याहना इसका कोई हल नहीं 
न डरो जग हंसाई से 
खूब नाम रोशन करेगी यह भी 
उड़ने दो इसे पढ़ाई से 

बीबी भी किसी की बहना है 
लाये हो तुम शहनाई से 
उसका अहं भी हो जाये तेरा 
तब होगी अपनी पराई से 

सर्दी कभी नहीं निकलती है 
बिना ओढ़े रजाई से 
मान सम्मान सब होते झूठे 
बिना प्यार अगवाई से 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'