Sunday 1 March 2020

A-497 गुड़ की डली 2.3.2020--1.45 AM

गुड़ की डली ज्यादा मीठी है 
किसी भी मिठाई से 
माँ की ममता ज्यादा भली है 
किसी भी आई से 

माँ का प्यार कितना रूखा है  
बुरा हो पिटायी से 
कीमत नहीं चुका सकते तुम 
सारी उम्र की कमाई से 

बहनों का प्यार तुम मत आंको 
पता लगता है विदाई से 
जब कलाई सूनी रह जाती है 
झगड़ों की रहनुमाई से 

बेटी कोई पराया धन नहीं है 
न जानो उसे जमाई से 
मान सम्मान इसका अपना है 
न बाँधो किसी कसाई से 

ब्याहना इसका कोई हल नहीं 
न डरो जग हंसाई से 
खूब नाम रोशन करेगी यह भी 
उड़ने दो इसे पढ़ाई से 

बीबी भी किसी की बहना है 
लाये हो तुम शहनाई से 
उसका अहं भी हो जाये तेरा 
तब होगी अपनी पराई से 

सर्दी कभी नहीं निकलती है 
बिना ओढ़े रजाई से 
मान सम्मान सब होते झूठे 
बिना प्यार अगवाई से 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'




6 comments:

  1. ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਜੀ ਇਹ ਰਚੱਨਾ ਪੱੜਨ ਨੂੰ ਵਕਤ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦਾ ਸੱਮਝਣੀ ਵੀ ਔਖੀ ਨਹੀਂ ਨਿਭਾਉਣ ਲਈ ਉਮਰ ਬੀਤ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਨਿੱਭ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵਾਕਈ ਗੁੜ ਦੀ ਡੱਲੀ ਤੋਂ ਮਿੱਠੀ ਹੈ

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  2. अद्भुत व्याख्या 🙏

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  3. बहुत ही मार्मिक कविता है दिल को छू गई एक बार फिर आप को नमन करता हूं आप की कलम से मोती झड़ते रहें खुदा से ििइलतेजा करता हूं।

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