किसी भी मिठाई से
माँ की ममता ज्यादा भली है
किसी भी आई से
माँ का प्यार कितना रूखा है
बुरा हो पिटायी से
कीमत नहीं चुका सकते तुम
सारी उम्र की कमाई से
बहनों का प्यार तुम मत आंको
पता लगता है विदाई से
जब कलाई सूनी रह जाती है
झगड़ों की रहनुमाई से
बेटी कोई पराया धन नहीं है
न जानो उसे जमाई से
मान सम्मान इसका अपना है
न बाँधो किसी कसाई से
ब्याहना इसका कोई हल नहीं
न डरो जग हंसाई से
खूब नाम रोशन करेगी यह भी
उड़ने दो इसे पढ़ाई से
बीबी भी किसी की बहना है
लाये हो तुम शहनाई से
उसका अहं भी हो जाये तेरा
तब होगी अपनी पराई से
सर्दी कभी नहीं निकलती है
बिना ओढ़े रजाई से
मान सम्मान सब होते झूठे
बिना प्यार अगवाई से
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
Gogia ji aap great hai.
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਜੀ ਇਹ ਰਚੱਨਾ ਪੱੜਨ ਨੂੰ ਵਕਤ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦਾ ਸੱਮਝਣੀ ਵੀ ਔਖੀ ਨਹੀਂ ਨਿਭਾਉਣ ਲਈ ਉਮਰ ਬੀਤ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਨਿੱਭ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵਾਕਈ ਗੁੜ ਦੀ ਡੱਲੀ ਤੋਂ ਮਿੱਠੀ ਹੈ
ReplyDeleteअद्भुत व्याख्या 🙏
ReplyDeleteVery nice 👌
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक कविता है दिल को छू गई एक बार फिर आप को नमन करता हूं आप की कलम से मोती झड़ते रहें खुदा से ििइलतेजा करता हूं।
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