अब तुझमें वैसी वो बात न होगी
जब बरसा करते थे बिन बारिश
अब वैसी वस्ल की रात न होगी
सावन की वर्षा होती थी सुहानी
अब ऐसी कोई बरसात न होगी
जिसमें भींगा करते थे दो ज़िस्म
अब ऐसी वो मुलाक़ात न होगी
बादल की गर्जन क्या देखते हो
लिश्कारे वाली भी बात न होगी
अँधेरे में रोशनी जज़्ब हुई जाये
उसमें जज़्ब की वो बात न होगी
छिपकर जिसका लेते थे चुम्बन
अब वैसी कोई बदज़ात न होगी
वट-वृक्ष के बीच ठंड संग रहना
इतनी किसी की बिसात न होगी
चाँदनी भी तुमको एक टुक देखे
इस दृश्य की कोई बात न होगी
कर ले जो तुमने करना है जोगी
अब तुझमें वैसी वो बात न होगी
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
No comments:
Post a Comment