Monday 2 March 2020

A-463 वस्ल की रात 9.9.19--4.01 AM

कर ले जो तुमने करना है जोगी 
अब तुझमें वैसी वो बात न होगी 

जब बरसा करते थे बिन बारिश 
अब वैसी वस्ल की रात न होगी 
सावन की वर्षा होती थी सुहानी 
अब ऐसी कोई बरसात न होगी 

जिसमें भींगा करते थे दो ज़िस्म 
अब ऐसी वो मुलाक़ात न होगी 
बादल की गर्जन क्या देखते हो 
लिश्कारे वाली भी बात न होगी 

अँधेरे में रोशनी जज़्ब हुई जाये 
उसमें जज़्ब की वो बात न होगी 
छिपकर जिसका लेते थे चुम्बन 
अब वैसी कोई बदज़ात न होगी 

वट-वृक्ष के बीच ठंड संग रहना 
इतनी किसी की बिसात न होगी 
चाँदनी भी तुमको एक टुक देखे 
इस दृश्य की कोई बात न होगी 

कर ले जो तुमने करना है जोगी 
अब तुझमें वैसी वो बात न होगी 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

No comments:

Post a Comment