Saturday 6 June 2020

A-517 अहंकार 7.6.2020-10.37 AM

बन्दे अब कैसे करेगा तू अपनी अहंकार की बात 
एक विषाणु ने दिखा दी तुमको तुम्हारी औकात 
तुम उसकी गिरफ़्त में रहे हो यह तो मालूम भी है 
फिर भी बातें ऐसे करते हो जैसे मामूली सी बात 

तुम्हारी हर रात भयावह बना रखी है इसी डर ने 
न सोते बने न जागते बस है यह करवट की रात 
फिर भी बघाड़ते हो ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं 
बताते हो तो चलो यह भी है एक अच्छी सी बात 

डर से डर का मुकाबला हो ही नहीं सकता कभी 
तुम इसको स्वीकारो पहले बिना किसी जज़्बात 
रास्ते खुलेंगे जब इसके साथ कदम भी उठाओगे 
तुम साहसी जिम्मेवार बनो, सुधर जायेंगे हालात  

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Friday 5 June 2020

A-516 शमशान 5.6.2020-8.42 PM

भला यह कैसा समय आ गया है 
शमशान में भी मातम छा गया है 
गलियां भी हो गयीं नीरस-नीरस 
जैसे कोई उनके बीच आ गया है 

कोरोना अकेला ही लगा हुआ है 
बिमारी का अब मंदा आ गया है 
गाड़ियां भी रुकी हुई हैं हरतरफ़  
लगता सब कुछ डगमगा गया है 

अब तो वो भागकर भी नहीं आते 
लगता विराना इनको डरा गया है 
सहमा-सहमा सा माहौल है आज  
और आज हर कोई घबरा गया है 

मुख पर मास्क हाथ में सैनिटाइज़
दोनों का सुनहरा वक़्त आ गया है 
कुछ लोगों ने अपना धंधा है छोड़ा 
राहजनी को यही धंधा भा गया है 

गम नहीं मौसम को भी बदलना है 
अब बदलने का मौसम आ गया है 
'पाली' तुमने घबराना नहीं है अब 
सन्नाटा बहुत कुछ समझा गया है

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Wednesday 3 June 2020

A-515 रिश्तों की आड़ 4.6.2020-7.16 AM

रिश्तों की आड़ में हम जब रिश्ते भुनाते हैं 
हम भी रिश्तेदार हैं यही क्यों भूल जाते हैं 
रिश्तों का धागा दोनों तरफ जुड़ा होता है 
तब हम ख़ुद का सिरा कहाँ छोड़ आते हैं 

जब अपनी उम्मीद दूसरों को जतलाते हैं 
क्या उस वक़्त हम अपना फ़र्ज़ निभाते हैं 
जब दहलीज़ फांद कर उस ओर जाते हैं 
रिश्तों की मर्यादा को क्या समझ पाते हैं 

पाट की चक्की में तो दोनों को पिसना हैं 
फिर क्यों हम इल्ज़ाम दूसरों पर लगाते हैं 
धुरा भी तो एक ही होता है दोनों के लिए 
घूमना होगा मुसल्सल फिर भी कतराते हैं 

तड़प रिश्ते की सिर्फ़ अपनों में ही होती है 
शायद इसीलिये हम अपनों को तड़पाते हैं 
स्वयं का दर्द तो तब महसूस होता है अंतः  
जब अपने पता नहीं कहाँ निकल जाते हैं 

वही बचते हैं जो धुरे से चिपके रहे ताउम्र 
बाक़ी तो पिसकर खुद ही निकल जाते हैं 
वक़्त को यूँ बर्बाद न कर 'पाली' अब तूँ 
नाज़ुकता को समझ ये फिर नहीं आते हैं 

अमृत पाल सिंह 'गोगिया'