Saturday 17 September 2016

A-016 खुश रहो बेशक दूर रहो 17.9.16—10.02 PM


खुश रहो बेशक दूर रहो 17.9.16—10.02 PM

खुश रहो बेशक दूर रहो 
उलझन में करीब आया करो 

हर ख़ुशी तुमको मुबारक हो 
दुःख दर्द हमको सुनाया करो 

जो बात तुमको जँचे वो तुम्हारी
जो न जँचे वो मुझे दे जाया करो 

वो गम वो परेशानियाँ मुझे दे दो 
तुम तो केवल मुस्कराया करो 

जज्ब कर लेते हैं हर जख्म को 
सारे जख्म हमें दे जाया करो 

खुशियों के गीत तो सभी गाते हैं 
गमगीन होकर भी गुनगुनाया करो 

यूँ तो दूरियाँ बहुत हैं अपने दरमियाँ 
थोड़ी और बढ़ाने करीब आया करो 

यूँ तो चोली दामन में अच्छे लगते हो 
कभी कभी इसके बिना भी आया करो 

कभी कभी इसके बिना भी आया करो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Monday 12 September 2016

A-004 कि तुम कहाँ हो 12.9.16—7.25 AM

 कि तुम कहाँ हो 12.9.16—7.25 AM

मेरे इतने करीब आओ 
कि मुझमें समा जाओ 
मैं तुमको ढूंढ़ता रहूँ 
तुम भी बता न पाओ 
कि तुम कहाँ हो। …… 

वो आँख मिचौली का खेल 
वो बचपन की रेल 
वो धक्के पे धक्का 
वो धक्कम धकेल 
तुम्हारा छुप छुप जाना 
फिर आकर बताना 
कि तुम कहाँ हो। ……

वो जवानी के मेले 
जब मिलते थे अकेले 
कभी खुद को छिपाना 
कभी छुपते छुपते आना 
कभी शर्मा के पीछे हटना 
कभी खुद ही बताना
कि तुम कहाँ हो। ……

आज इतने करीब होकर 
तुम मेरे नसीब होकर 
मुझसे ही दूर रहकर  
खुद में मसरूफ रहकर 
खुद से खुद को छुपाना 
किसी को भी न बताना 
कि तुम कहाँ हो। ……

मेरे इतने करीब आओ 
कि मुझमें समा जाओ 
मैं तुमको ढूंढ़ता रहूँ 
तुम भी बता न पाओ 
कि तुम कहाँ हो। …… 

कि तुम कहाँ हो। …… 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday 11 September 2016

A-015 रात अभी बाकी है 25.1.16—2.54 AM

 रात अभी बाकी है  25.1.16—2.54 AM

रात अभी बाकी है संवाद अभी बाकी है 
थोड़ा इन्तज़ार कर शराब अभी बाकी है 

पैमाना हाँथ में लिए देख रहा है साकी 
थोड़ी और तलब इज़हार अभी बाकी है 

हुस्ने महफ़िल में जवानी की तलब है 
थोड़ा सब्र कर दीदार अभी बाकी है 

सज़कर आएगी रात नज़ाकत के संग 
सजा ले महफ़िल इंतज़ार अभी बाकी है 

तूँ और तेरा हुस्न तस्दीक किये जाते हैं 
मगर तेरे आने का इकरार अभी बाकी है 

चाँद तारे मशरूफ हैं अपने ही गगन में 
पहर भी सरकता निशान अभी बाकी है 

धीमी सी दस्तक हुई लगती है अभी 
सुबह होने का फरमान अभी बाकी है

रात अभी बाकी है संवाद अभी बाकी है 
थोड़ा और इन्तज़ार शराब अभी बाकी है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Friday 9 September 2016

A-032 कुछ तो बात करो 10.9.16—5.11 AM


 कुछ तो बात करो  10.9.16—5.11 AM

कुछ तो बात करो 
कुछ तो संवाद करो 
कोई तो प्रश्न करो 
कुछ तो विवाद करो 

कुछ तो हुआ होगा 
कुछ तो छुआ होगा 
कुछ तो रहा होगा 
कुछ तो सहा होगा 

कुछ तो जाता होगा 
कुछ तो आता होगा 
कुछ तो होता होगा 
कुछ तो खोता होगा 

अलग अलग रंगों के 
कुछ तो विचार होंगे 
कुछ अपने भी होंगे 
कुछ लिए उधार होंगे 

जब तक मैं सही हूँ 
दूजा गल्त होगा 
आँखें भी नम होंगी  
रिश्ता भी कम होगा 

मोती भी टपकेंगे 
दर्शन को तरसेंगे 
नयन तरस जायेंगे 
हम फिर पछतायेंगे 

सब नजर का खेल है 
न धक्का है न पेल है 
अपनी नजर हटते ही 
दूसरों की दिखने लगे 

दूसरों की हर बात भी 
हमारे पल्ले पड़ने लगे 
दूसरों की हर बात भी 
हमारे पल्ले पड़ने लगे 

Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


Monday 5 September 2016

A-023 कभी लौट के आना 13.3.16—6.43 PM

 कभी लौट के आना 13.3.16—6.43 PM

कभी लौट के आना मेरी जिन्दगी में 
एक एक पल, का हिसाब मिलेगा  

कितना तनहा कितना बेकरार हुआ 
हर पल, और हर बार मिलेगा 

तेरे बिना जिन्दगी क्यों इतनी बंझर हुई 
हर पल, तुमको बेनकाब मिलेगा 

बहुत ढूँढा तुमको तेरे जाने के बाद 
इसका एक एक, सवाल मिलेगा 

लहू जो निकला उस हसरत तक 
इसका एक एक, निशान मिलेगा 

लिखना मज़बूरी रही इस हादसे की 
वरना जिक्र, भी कभी कभार मिलेगा 

गर तूँ लौट के न आयी इस जिंदगी में 
हर गली नुक्कड़ पे, इश्तिहार मिलेगा

मत भूल कि तूँ ही मेरी कविता है 
इसका भी तुमको खिताब मिलेगा 

मत बन मुखबिर तूँ इस हादसे की 
"पाली" भी तुमको जार जार मिलेगा 

कभी लौट के आना मेरी जिन्दगी में 
एक एक पल का हिसाब मिलेगा..…..

एक एक पल का हिसाब मिलेगा


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday 4 September 2016

A-025 मेरे आने से 04.09.2016—2.30 PM

मेरे आने से 04.09.2016—2.30 PM

मेरे आने से क्या हो गया है 
कैसे यह बवाल हो गया है 
मैंने किया ही क्या है जानम 
वक़्त एक सवाल हो गया है 

मैं नहीं था 
तब भी दुनिया चल रही थी 
मैं अब हूँ तब भी चल रही है 
चला जायूँगा तब भी चलेगी 
हर दरार भी खुद ही सिलेगी 

फिर किस बात पे अड़ा हूँ 
किसी भ्रम के संग जुड़ा हूँ 
किस का अहम करता हूँ 
क्यूँ नहीं किसी से डरता हूँ 

कोई पास आता क्यूँ नहीं 
कोई समझाता क्यूँ नहीं है 
सारा हादसा मेरे आने से हुआ
ये तमाशा मेरे कतराने से हुआ 

जिम्मेवारी समझ आने लगी है 
बात सारी मर जाने से जुडी है 
तेरी साथ रहने में जो शकून है 
सुनने और निभाने से जुडी है…..  

सुनने और निभाने से जुडी है…..  


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”