Monday, 12 September 2016

A-004 कि तुम कहाँ हो 12.9.16—7.25 AM

 कि तुम कहाँ हो 12.9.16—7.25 AM

मेरे इतने करीब आओ 
कि मुझमें समा जाओ 
मैं तुमको ढूंढ़ता रहूँ 
तुम भी बता न पाओ 
कि तुम कहाँ हो। …… 

वो आँख मिचौली का खेल 
वो बचपन की रेल 
वो धक्के पे धक्का 
वो धक्कम धकेल 
तुम्हारा छुप छुप जाना 
फिर आकर बताना 
कि तुम कहाँ हो। ……

वो जवानी के मेले 
जब मिलते थे अकेले 
कभी खुद को छिपाना 
कभी छुपते छुपते आना 
कभी शर्मा के पीछे हटना 
कभी खुद ही बताना
कि तुम कहाँ हो। ……

आज इतने करीब होकर 
तुम मेरे नसीब होकर 
मुझसे ही दूर रहकर  
खुद में मसरूफ रहकर 
खुद से खुद को छुपाना 
किसी को भी न बताना 
कि तुम कहाँ हो। ……

मेरे इतने करीब आओ 
कि मुझमें समा जाओ 
मैं तुमको ढूंढ़ता रहूँ 
तुम भी बता न पाओ 
कि तुम कहाँ हो। …… 

कि तुम कहाँ हो। …… 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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