Monday, 31 October 2016

A-208 छिपाये गर छिप जाता 1.11.16—6.10 AM

छिपाये गर छिप जाता 1.11.16—6.10 AM

छिपाये गर छिप जाता 
न होता इश्के इम्तिहाँ 
कुछ फूल यहाँ खिलते 
कुछ फूल खिलते वहाँ 

हर फूल बेख़ौफ़ होता 
होता एक सुन्दर जहां 
मुकर्रर पहले से होता 
किसको मिलना कहाँ 

तुम मेरे ही नसीब होते 
होता वो सुन्दर कारवाँ 
हर लम्हें में प्यार होता 
प्यार का अपना जहां 

मैं भी तेरा मन्सूर होता 
तू होती मेरी नूरे जहाँ 
इश्क़ भी परवान होता 
हम रहते हरदम जवाँ 

छिपाये गर छिप जाता 
न होता इश्के इम्तिहाँ ……..


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday, 30 October 2016

A-205 तेरा वो मखमली एहसास 11.8.2016—6 AM

भूले नहीं हम …………
तेरा वो मखमली एहसास 

किसको मैं अपना कहूँ 
किसको मैं कहूँ उदास 
जिसका भी जिक्र करूँ 
वही बन जाता है खास 

तेरे चेहरे की बात करूँ 
कैसे निकाला है तराश 
तूने चेहरा छिपा रखा है 
कह कर खुद को उदास 

तेरे नयनों की बात करूँ 
पहना खूबसूरत लिबास 
कजरा से नयन कजरारे 
नयन भी मटके बिंदास 

इनका जिक्र क्यूँ न करूँ 
नथुनों का तीखा उभार 
आन शान दोनों निराली 
बना रहा चेहरे को ख़ास 

होंठ रसीले क्या कहने 
बिन वर्षा करते बौछार  
अब कैसे मैं बयां करूँ  
जब तू ही दिखे उदास 

सिलमे सितारों का जश्न 
ये हुस्न और ये लिबास 
बला का खूबसूरत चेहरा 
और वो भी इतना उदास 

भूले नहीं हम………….
तेरा वो मखमली एहसास 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday, 16 October 2016

A-202 तेरा दिल मुझमें धड़कता है 15.10.16—11.27AM


A-202 तेरा दिल मुझमें धड़कता है 15.10.16—11.27AM

तेरा दिल मुझमें धड़कता है 
नफ़रत करूँ कि प्यार करूँ 
प्यार करूँ तो तौबा मेरी 
जग में कैसे इजहार करूँ 

लोग पहले से डराए बैठे हैं 
देखो नज़रें वो गड़ाये बैठे हैं 
कैसे मैं तेरी कोई बात करूँ 
भला कैसे मैं इजहार करूँ 

तू ही बता भला सूरत तेरी 
बनती नहीं अब मूरत तेरी 
कैसे भला अब इकरार करूँ 
कब तक तेरा इंतज़ार करूँ 

बात बने जो दिल से कहीं 
मिल जाते हम दिल से वहीँ 
हर पल तेरा मैं दीदार करूँ 
दुनिया में तेरा इज़हार करूँ 

तेरा दिल मुझमें धड़कता है 
नफ़रत करूँ कि प्यार करूँ 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”





Wednesday, 12 October 2016

A-201 आ जाया करो 11.8.16—5.49 AM

आ जाया करो 11.8.16—5.49 AM

आ जाया करो 
कभी सूरज बन 
कभी पहली किरण 
कभी लाली के संग 
मुस्कराते हुए आ जाया करो 

पंखुड़ी गुलाब बन 
खुशबू की आड़ में 
हवा की तरंग बन 
मौसम की आड़ में 
धीरे धीरे बिखर जाया करो 

मौसम के गीत बन 
हवा के संगीत बन 
मीठी आवाज में 
झींगुरों की साज में 
कभी कोई संगीत सुनाया करो 

मचल जायो कभी 
सावन की ऋतु बन
पतझड़ की आड़ में  
मौसम बरसात में 
धीरे धीरे लिपट जाया करो 

मत कर इन्तज़ार 
बारिश के मौसम का 
खुश्क हवाओं संग 
धीरे से बदली बन 
कभी यूँ ही बरस जाया करो 

आंधी तूफ़ान बन
बाढ़ की शान बन 
खुद बहकते हुए 
मुझको बहका कर 
कभी मुझको भी डराया करो 

हवा के झोंके से 
फूल भी गिरते हैं 
झोंके से ही सही 
तुम भी झटक कर 

मेरे आगोश में समा जाया करो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia