Sunday, 29 January 2017

A-232 तू फिर से आ गयी

A-232 तू फिर से आ गयी

ओ चाँदनी तू फिर से आ गयी
और मुझे तू फिर से रुला गयी 

गिलों का दौर अभी चल रहा 
शिकवों को कोई मसल रहा 
अश्क़ों का बहाव भी न रुका  
जख्मों के घर भी ताजा फूंका 

आशायों के दीप भी बुझ चले 
हम देखते ही रहे और वो चले 
शहनाई के गीत दम तोड़ने लगे 
गुफ़्तगू भी सम्बन्ध जोड़ने लगे 

किस शोहबत की हम बात कहें 
किस लम्हें को अब जज्बात कहें 
बेअसर हो कर जब हवा निकले 
किस मौसम से अब निज़ात कहें 

सिमट गया था मैं किसी मोड़ पे 
नहीं पहुँच सका मैं किसी तोड़ पे 
मुक़द्दर की गुफ़्तगू मैंने खूब देखी  
गाँठ फिर भी पड़ी हरेक जोड़ पे 

ओ चाँदनी तू फिर से आ गयी

और मुझे तू फिर से रुला गयी 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Tuesday, 17 January 2017

A-231 आज तेरी इबादत 18.1.17--4.28 AM


आज तेरी इबादत की तमन्ना जाग उठी 
मैं उठा, दोनों हाथ उठे, रागिनी राग उठी 
मुश्किल तो तब हुई, जब तुम ही न मिले 
शक हुआ और हमारी फितरत जाग उठी

ओर मिले, छोर मिले मिले कोई विराम 
तभी तो लिख जाये कोई छोटा सा नाम 
कुछ सुर्खी कहीं बिंदी,कहीं विराम लगे 

तभी तो मैं कह सकूँ मुझे मेरे राम मिले 

बहुत यत्न किए, दस्तक भी दी हज़ार  
मिल गयी तसवीरें मिला बड़ा अम्बार 
उन तस्वीरों में तू तो कहीं भी नहीं था 
चाहत थी तू मिले मिले मुझे निरंकार 

मन में एक हूक उठी संग आवाज़ उठी 
उठा सरगम सुर और रागिनी राग उठी 
मधुर बेला स्तुति की पुकार जाग उठी 
तू मिला तेरे मिलने की बात भाग उठी 

आज तेरी इबादत की तमन्ना जाग उठी 
मैं उठा, दोनों हाथ उठे, रागिनी राग उठी 
Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Friday, 13 January 2017

A-230 तुम ऐसे बसे मेरे दिल में 13.1.17--6.46 AM


तुम ऐसे बसे मेरे दिल में 
समंदर हो, लहरें हो
उछलता हुआ पानी 
मिलने को मुंतज़िर 
बिना कोई परेशानी 
बेताबी की हद तक 
करे अपनी मनमानी 

तुम ऐसे बसे मेरे दिल में 
रात हो, अँधेरा हो 
कोहरे की आड़ में 
चाँद का सबेरा हो 
तारों की छाँव में 
गुमनाम बसेरा हो 
न तेरा हो न मेरा हो 


तुम ऐसे बसे मेरे दिल में 
फूल हो, खुशबू हो 
हकीकत गुफ़्तगू हो 
खूबसूरत राज़ हो 
दिल हो सिरताज़ हो 
इश्क़ हो हक़ीक़ी हो 
भँवरा नज़दीकी हो 

तुम ऐसे बसे मेरे दिल में ……

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday, 5 January 2017

A-227 बहुत पीड़ा है जेहन में 6.1.17--5.03 AM


A-227 बहुत पीड़ा है जेहन में  6.1.17--5.03 AM

बड़ी पीड़ा है जेहन में  

किसको बताऊँ 
किसको दिखाऊं 
किसको सुनाऊँ 
किस से छुपाऊँ 

बड़ी पीड़ा है जेहन में 

कभी आँखों से टपकती है 
कभी नैनों में झलकती है 
कभी चेहरे पर नज़र आती है 
कभी मुस्कराहट बन जाती है 

बड़ी पीड़ा है जेहन में 

कभी गला रुँध जाता है 
कभी कम्पन समाता है 
कभी बेचैनी छा जाती है 
कभी हँस कर दिखाती है 

बड़ी पीड़ा है जेहन में 

कभी प्रार्थना बन जाती है 
कभी किस्से सुनाती है 
कभी उदासीन हो जाती है  
कभी खुद को समझाती है 

बड़ी पीड़ा है जेहन में 

क्या पड़ा है किस्से कहानियों में 
मुर्द पड़ी जज्बाती निशानियों में 
न जाने कब की वो मर चुकी हैं 
जीवित हैं मेरी ही कहानियों में ... 

जीवित हैं मेरी ही कहानियों में …

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Monday, 2 January 2017

A-225 आज फिर मुरशिद का इशारा देखा 2.1.17--9.36 PM

आज फिर मुरशिद का इशारा देखा 
अपने इतने क़रीब और नज़ारा देखा
तरसती है दुनिया जिस पल के लिए 
उस पल को जी भर के हज़ारा देखा 

देखा उनको भी टकटकी लगाते हुए
निगाहों से निगाहें अपनी लड़ाते हुए 
उनके तस्वीरों की फ़ेहरिस्त को देख 
मज़मून उमड़ पड़े यूँ ही गुनगुनाते हुए 

नूरानी चेहरा चाँद उमड़ आया था  
उनको देख ख़ुदा भी मुस्कराया था 
दिल को सुकून आया मन को चैन 
अब गुजरेंगे लम्हें अब गुजरेगी रैन…  


अब गुजरेंगे लम्हें अब गुजरेगी रैन…  

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"