समंदर हो, लहरें हो
उछलता हुआ पानी
मिलने को मुंतज़िर
बिना कोई परेशानी
बेताबी की हद तक
करे अपनी मनमानी
तुम ऐसे बसे मेरे दिल में
रात हो, अँधेरा हो
कोहरे की आड़ में
चाँद का सबेरा हो
तारों की छाँव में
गुमनाम बसेरा हो
न तेरा हो न मेरा हो
तुम ऐसे बसे मेरे दिल में
फूल हो, खुशबू हो
हकीकत गुफ़्तगू हो
खूबसूरत राज़ हो
दिल हो सिरताज़ हो
इश्क़ हो हक़ीक़ी हो
भँवरा नज़दीकी हो
तुम ऐसे बसे मेरे दिल में ……
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
No comments:
Post a Comment