ओ चाँदनी तू फिर से आ गयी
और मुझे तू फिर से रुला गयी
गिलों का दौर अभी चल रहा
शिकवों को कोई मसल रहा
अश्क़ों का बहाव भी न रुका
जख्मों के घर भी ताजा फूंका
आशायों के दीप भी बुझ चले
हम देखते ही रहे और वो चले
शहनाई के गीत दम तोड़ने लगे
गुफ़्तगू भी सम्बन्ध जोड़ने लगे
किस शोहबत की हम बात कहें
किस लम्हें को अब जज्बात कहें
बेअसर हो कर जब हवा निकले
किस मौसम से अब निज़ात कहें
सिमट गया था मैं किसी मोड़ पे
नहीं पहुँच सका मैं किसी तोड़ पे
मुक़द्दर की गुफ़्तगू मैंने खूब देखी
गाँठ फिर भी पड़ी हरेक जोड़ पे
ओ चाँदनी तू फिर से आ गयी
और मुझे तू फिर से रुला गयी
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
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ReplyDeleteYe alfaaz ye ahsas,
ReplyDeleteKoi nayee tu nahi,
Fir bhi aik sailaab hai,
Aankhon main! Yaadon se
Bhut khubsurat likha hai sir apne