बहाना ढूँढते हो
कभी मुस्कुराने का
कभी खिलखिलाने का
झूठी हँसी हँसकर
दूसरों को हँसाने का
बहाना ढूँढते हो
गुमशुदा हो जाने का
खुद से उलझ कर
निराशा का ढोल पीट
दूसरों को समझाने का
बहाना ढूँढते हो
अपना दुःख जताकर
दूसरों को बताने का
दूसरों की सहमति हो
अँखियों में पानी लाने का
बहाना ढूँढते हो
खुद को सही बता
इसके कारण गिनाने का
दूसरे कितने ग़लत हैं
उनकी बेवकूफी जताने का
बहाना ढूँढते हो
झूठ में छिप जाने का
दूसरों की सहमति हो
बच के निकल जाने का
निकल कर मुस्कुराने का
बहाना ढूँढते हो
धर्म की चादर ओढ़
अपने ढोंग छुपाने का
जिम्मेवारी से दूर भाग
धार्मिक कहलाने का
कब तक ढूँढते रहोगे
जो कहीं है ही नहीं
सब तेरा किया है
तेरे ही शब्द हैं सही
मौका अभी भी है
जी लो सच के संग
न रहे पछतावा कोई
जिंदगी में रहे उमंग
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Thank you so much for your appreciation! Gogia
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