Friday 24 February 2017

A-241 फिर सवाल कैसा 24.2.17--12.48 AM

A-241 फिर सवाल कैसा 24.2.17--12.48 AM

ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी है फिर सवाल कैसा 
कौन सा सवाल ज़िन्दगी से मलाल कैसा 
उलझन में खड़ी हो या सरकती हो जिंदगी 
न कुछ सही न ग़लत फिर ये बवाल कैसा 

हर जबाव लाता इक सवाल उलझन का 
फिर भी ढूँढ़ते फिरते हो यह जबाव कैसा 
उलझन ही तो ज़िन्दगी की रफ़्तार बनी है 
उलझन में ही खड़े हो दिल बेक़रार कैसा 

मत उलझ जिंदगी से उसका धर्म समझ 
ठोकरें मार मार सिखाती खिलवाड़ जैसा 
आज जो भी हो ठोकरों की बदौलत हो 
फिर ठोकरों से भला क्यों इन्कार कैसा 

इतनी बेरुख़ी इतनी मोहब्बत की कमी 
अपनों से रूठना फिर यह ऐतबार कैसा 
अपने ही हैं जिनसे तक़रार कर सकते हो  
अपने ही न होते तो सोचो तक़रार कैसा 

गर किसी का दामन थाम ही लिया है 
तो उसको गले लगाने से इन्कार कैसा 
प्यार के दो मीठे बोल गर निकलते नहीं 
कड़वे शब्दों का बे वज़ह इज़हार कैसा 

मत भूल आँखें चार हुई थी तो प्यार हुआ 
उन्हीं आँखों में फ़ितरत का अम्बार कैसा 
प्यार तो तुमने डूब जाने के लिए किया था 
अब डूब गए हो तो डूबने से इनकार कैसा 

समंदर की लहरों में सिर्फ वही रह पाते हैं 
जिसने सीख लिया समर्पण तो राज कैसा 
मत ख़ौफ़ कर समन्दर की लहरों का पाली 
उनके बिना ज़िंदगी कहाँ वर्ना इज़हार कैसा 

लहरें ही सिखाती हैं ज़िंदगी की उछल कूद 
वर्ना कौन रूठे मनाये और यह तक़रार कैसा 
प्यार के रंग हैं तो सारे रंग घुल मिल जाते हैं 
वर्ना रंगों को भी कौन पूछे और इज़हार कैसा 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

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