Tuesday 14 February 2017

A-238 मेरी फ़ितरत नहीं है 15.2.17--6.27 AM

A-238 मेरी फ़ितरत नहीं है 15.2.17--6.27 AM

मेरी फ़ितरत नहीं है ऊँगली उठाना 
वर्ना हरेक ऊँगली को उठाना पड़ता 
किस किस का जवाब देती फिरती
हर एक सवाल को दोहराना पड़ता 

मेरा धर्म है मैंने तुमसे प्यार किया है 
वर्ना नफ़रत का भार उठाना पड़ता 
शुक्र कर मिल गया मैं ज़िन्दगी में 
वर्ना खुद को खुद से हराना पड़ता 

खो गयी ज़िंदगी बीच मझदार कहीं 
वर्ना हर ज़ख्म यूँ ही छुपाना पड़ता 
तेरी नफ़रत सदक़ा शायर बन गया 
वर्ना ज़ुबान पे ताला लगाना पड़ता 

तेरी बेवाकी बड़ी खुदगर्ज़ निकली 
वर्ना तुमको खुदगर्ज़ बनाना पड़ता 
आँसूओं को तरस आ जाता अगर  
फिर तुझको यूँ न समझाना पड़ता 

तेरी हुकूमत के तो हम कायल हैं 
वर्ना बोझ समझ के उठाना पड़ता 
तेरी हुकूमत सदक़ा प्यार करते हैं 
वर्ना तुमको रोज ही भुलाना पड़ता 
Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

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