Tuesday 17 April 2018

A-170 नन्हियों का दर्द 18.5.16--10.09 AM

मना किया था तुम कभी मत आना 

तेरे आने से हम कितना चकरा गए 

किसी ने देख लिया तो क्या कहेंगे 

इतनी सी बात और आंसू बहा गए 


मैंने तो केवल चुम्बन ही किया था 

मेरे मन तन हज़ारों प्रश्न मंडरा गए 

किस-किस को जवाब देता फिरूं

जिस के आने से खुशियाँ नहा गए 


गम की सदा खुशियों का पपीहा 

ज़िन्दगी में जीने के आभास पा गए 

बरसों इंतज़ार किया जिस पल का 

उस पल के हर पल में ही समा गए 


तेरे आने में सुकूँ आया ख़लकत में 

राखी बाँधने वाले नन्हे कर गए 

किसी की हमनशीं बनकर मंडराये 

नये सम्बन्ध बनते हुए नज़र गए 


किसी को बेटी वसुन्धरा बन मिले 

किसी की आँचल में वत्स गए 

तेरी किलकारियां जहाँ-जहाँ गूँजे 

नियति के दरवाजे समस्त गए 


एक और बेटी को जो रास्ता मिला 

सच है कि थोड़ा हम भी घबरा गए 

बेटियों का भार ऊपर से मैं अबला 

दान दहेज़ के सोच हमको डरा गए 


तीसरी बार तो समझो हद हो गयी 

लक्ष्मी जी जैसे साक्षात ही गए 

बात लक्ष्मी तक होती तो ठीक थी 

आज के हालात मुझको हिला गए 


समाज की रचना की बात करते हैं  

इंसाफ़ के तराजू से ख़ुद शर्मा गए 

चंद लोगों से जिन्दा थी इंसानियत   

चंद लोगों को तो लोग ही खा गए 


गुंडा गर्दी के अश्क पोछे नहीं जाते 

कितने रावण मिल राक्षस गए 

नवरात्रों में पूजी जाने वाली कन्या 

सामग्री बन कर थाली में समा गए 


हम कहाँ से चल कर कहाँ पहुंचे हैं 

रास्ता भूल गए हम स्वयं घबरा गए 

नहीं चाहिए मुझे अब बेटी पुरस्कार 

बेटे की चाह में बेटी को ही खा गए 


ढिंडोरा झूठा पीटते अपना होने का 

नसीहत देते-देते और अब कहाँ गए 

'पाली' मासूम नन्हियों का दर्द देख 

हम बेशर्म निकले हालात शर्मा गए 


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'




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