A-199 जब कभी आना 2.4.18–5.32 AM
जब कभी आना मेरी बन चली आना
नए पुराने बीते हुए किस्से भी सुनाना
स्वछन्द होकर हँसना मुझे भी हँसाना
नीर संग बह गयी तो मुझे भी रुलाना
सोलह सिंगार संग अलता भी लगाना
नैनों में कजरा लगा मुझे भी दिखाना
उँगलियों में बिच्छूरिया बृह्द बहुरंगी
पायल की छन छन झंकार भी लाना
कमर में लटके घाघरा ऊपर से चोली
कमरिया अपनी कमरबंध भी सजाना
घुंघरू सजे कतार चाभियों का गुच्छा
ऊँगली में उलझा कर उन्हें भी नचाना
पग पग पर जब तेरी पायल बजेगी
पायलों की झंकार मुझे भी सुनाना
नाच उठेगी जब तेरे अंदर नागिनिया
आनंद विभोर होकर मुझे भी नचाना
जब कभी आना मेरी बन चली आना
नए पुराने बीते हुए किस्से भी सुनाना
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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कितने चेहरे हैं इस दुनियां मैं,
ReplyDeleteमग़र हमको एक चेहरा ही नज़र आता है।
दुनियां को हम क्या देखें,
उनकी यादों में सारा वक़्त गुज़र जाता है।
Thank you so much Arora Saheb for your appreciation
ReplyDelete✨✨✨✨✨✨✨🙏
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