Monday 16 April 2018

A-358 एक नया गीत 15.4.18--3.54 PM

A-358 एक नया गीत 15.4.18--3.54 PM 

बड़े तसव्वुर से हमने तुमको चाहा है 
मुझे वो पुराने दिन याद आने लगे हैं 
तुम हुस्न ए मल्लिका हुआ करती थी 
बिसरे हुए लम्हें अब गुनगुनाने लगे हैं 

तेरे जिस्म का आधार अभी ताज़ा है 
यह बात हम इसीलिए बताने लगे हैं 
ज़रा दूर रखना अपना ग़रूर स्वयं से  
देखना अब हम भी मुस्कुराने लगे हैं 

ऐसा न हो तेरा ग़रूर हो जाये शर्मिंदा 
क्यों कि हम मन भावन सुनाने लगे हैं 
निकल गया जो दिल को छूकर कहीं 
तुम न कहना कि चक्कर आने लगे हैं 

तेरे हुस्न की तारीफ़ तो मैं भी करता हूँ 
तुमको देख शख़्स जहाँ इतराने लगे है 
उनका इरादा भी यह तो क़तई नहीं है
कि लोग अब तुमको ही चाहने लगे हैं 

तेरी नज़रों के तले आसमान बसता है 
इसीलिए हम भी नज़रें झुकाने लगे हैं 
इस बात का यह मतलब यह नहीं है 
कि हम तुमको देख कर शर्माने लगे है 

याद है तुम्हें जब जीना हुआ था दूभर 
तुमने कहा था वो दिन रुलाने लगे है 
लौट कर चले आओ मेरी ज़िंदगी में 
क्यों कि हम फिर तुम्हें चाहने लगे हैं 

तुम जो मुस्करा दिए देखा है नतीज़ा 
लोग भी कितने मायने बनाने लगे हैं 
बदल न जाये तस्वीर तदबीर में कहीं 
इस अफ़साने को लोग भुनाने लगे हैं 

कल तुम मिले तो थोड़ा सकून आया 
रिश्ते हमारे फिर क़रीब आने लगे हैं 
पतझड़ आया था वो भी निकल गया 
सावन के दिन फिर लहलहाने लगे हैं 

बेपरदा हो जाओ अब कोई फ़र्क़ नहीं 
देखो हम भी बेख़ौफ़ मुस्कुराने लगे हैं 
तेरे लबों की मुस्कान को बिखरता देख 
हम भी एक नया गीत गुनगुनाने लगे हैं 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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1 comment:

  1. उनकी यादों को हमें सूफियाना रखा,
    अपने दिल में उनका आशियाना रखा,
    जितनी बार हमने उनसे मिलने की कोशिश की,
    उसने हर बार एक नया बहाना रखा।

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