Monday 28 May 2018

A-371 कुहासा-29.5.18--2.22 AM

A-371 कुहासा-29.5.18--2.22 AM 

दाँत किटकिटाने लगे दिल जब मुस्कुराने का 
रोमांच होता हो जब वक़्त हो जाये नहाने का 

रोंगटे खड़े होने लगे सिहरन भी जब होने लगे 
याद आ जाये तब सृष्टि से रिश्ता निभाने का 

दिल भी करता हो जब उठकर मुकर जाऊँ मैं 
ढूँढ़ रहा हो सहारा किसी अन्जाने बहाने का 

कम्बल भी न छूटे और अंग अंग सिहरने लगे 
तब सच्चा मजा है कंबल से लिपट जाने का 

कम्बल छोड़ हम जब कंबल से निकलने लगे 
मज़ा आ जाता है चाय की चुस्की लगाने का 

कम्बली ओढ़कर प्रात: जब हम निकलने लगे 
मज़ा आता है मुख संग सहसा भाप उड़ाने का 


इतने कपड़ों के संग दिखता कुछ भी नहीं अब 
नहीं रह जाता उपाय सिवा अंदाज़ा लगाने का 

हाथों में उलझे हुए दस्ताने भी अब करें गुफ़्तगू 
मज़ा नहीं आता किसी से भी हाथ मिलाने का 

धुँधले कुहासे में फँसी हुई हैं रवि की किरणें 
कोशिश कर रहीं कुहासे के निकल जाने का

प्रदूषण की परत भी फँसी है कुहासे में कहीं 
उसको भी इंतज़ार है कुहासा निपट जाने का 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Friday 25 May 2018

A-370 कहानीकार 25.5.18--1.39 AM

A-370 कहानीकार 25.5.18--1.39 AM 

हम सभी एक कहानीकार ही हैं 
और कहानियाँ ख़ूब बना रहे हैं 

और इस बात से वाकिफ़ भी हैं 
फिर भी यह सब से छुपा रहे हैं 

हम कितने ज्ञानी हो गए सुनकर 
यही बात हम सबको बता रहे हैं 

कोई सबूत नहीं इस कहानी का 
फिर भी हम सबको सुना रहे हैं 

नहीं कभी सँवरा न सँवरेगा कभी  
फिर भी वही गीत गुनगुना रहे हैं

प्रथा चल पड़ी कहानी बनाने की 
हम तो केवल उसको निभा रहे हैं 

नहीं देखा हमने इसके पनपने में 
हम कितना कुछ कैसे गवाँ रहे हैं 

मान लिया वो सच जो है ही नहीं 
उसी सच में हम रिश्ते निभा रहे हैं 

कौन सा सच कहाँ रहता है भाई 
खुद से धोखा खुद ही खा रहे हैं 

पिता पिता नहीं न बच्चे अपने हैं 
जिनको स्वयं अपना बता रहे हैं 

पति पत्नी भी कहाँ सगे हुए हैं 
वो तो केवल रिश्ते निभा रहे हैं 

दोस्ती को सच्चा मान लिया तो 
दोस्ती भी देखो कैसे निभा रहे हैं 

सच मानो "पाली" दफा हो जाये 
सब के सब झूठा मुस्कुरा रहे हैं 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”






Saturday 19 May 2018

A-364 अंधविश्वास 18.5.18--3.44 AM

A-364 अंधविश्वास 18.5.18--3.44 AM 

अंधविश्वास कभी भी अंधविश्वास नहीं है 
अंधविश्वासी को इस पर विश्वास नहीं है 

जब तक न दिख जाये सच बना रहता है 
दिख जाये तो अंधविश्वास नहीं रहता है 

बिल्ली ने राह काटा तुम घर लौट आये 
बिल्ली भला इसका कैसे विरोध जताये 

जब तुमने रास्ता काटा जब बिल्ली का 
बिल्ली के लिए मामला यह खिल्ली का 

कुत्ता जब रोये तो तुम कुत्ता लगे भगाये 
वो चला जाये क्या बुरी ख़बर टल जाये 

जब तुम रोयो तो कुत्ता भी तो करे उपाय 
कि उसकी मसला भी आते ही टल जाये 

सती होने में कोई अंधविश्वास नहीं था 
तब सत्य था कोई विरोधाभास नहीं था 

आत्म संदर्भित है इसका किरदार नहीं है 
खुद में रहता है इसका कोई भार नहीं है 

अंधविश्वास उसका मायावी ज़िक्र है 
सच दिखे तो नहीं रहता कोई फ़िक्र है 

मैं के अहम् में भी कथापि सत्य नहीं है 
है के समक्ष भी कोई रोशनी रत नहीं है 

गिर के टूट जाये कोई विकल्प नहीं है 
सच में दृढ़ता शामिल है अल्प नहीं है 

मैं को मुश्किल से ही बदलते देखा है 
मैं के समकक्ष नहीं रहती कोई रेखा है 

कौन कैसा है एक झूठ की परिभाषा है 
तुम्हें भाता नहीं तुम्हारी ही अभिलाषा है 

कोई वैसा है ही नहीं जैसा बना रखा है 
बुत्त बनाकर तुमने मन में सजा रखा है 

जो जैसा है वैसा ही उसे स्वीकार करो 
जीवन में आया है उसका सत्कार करो

नहीं बदल सकते तुम लाख प्रयास करो 
खुद भी तुम जैसे हो वैसा स्वीकार करो 

चुनाव करो जो मिला है उसी के अधीन 
नहीं तो ढूंढते रहोगे हो जाओगे ग़मगीन 

नहीं मिला कभी मन चाहा साथी कोई 
करिश्मा है कोई कीड़ी और हाथी कोई 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 17 May 2018

A-363 बिक्री क्यों बढ़ानी है 15.5.18—10.51 PM

A-363 बिक्री क्यों बढ़ानी है 15.5.18—10.51 PM 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

खानी तो दो रोटी चावल दाल पुरानी है  
कभी कभी मीठा भी मिल जाये तो क्या 
अगले दिन शुगर भी तो चेक करवानी है
न चले न चलनी अपनी कोई मनमानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

चाय भी मिले तो दूध में पानी मिलाकर 
शक्कर भी तो अब थोड़ी ही मिलानी है 
जाँच जब डॉक्टर से करवानी पड़ जाये 
हो जाना दूध का दूध पानी का पानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

उत्पादन की चिंता भी हरदम रहे सताये 
किस पुर्जे को कब कहाँ व् कैसे लगायें 
आपूर्ति नहीं हुई तो हो जानी बदनामी है 
यह बात किसी को समझ नहीं आनी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

उत्पादन के चक्कर में उम्र क्यों गँवानी है 
मशीन जो भूल चुकी अपनी ही जवानी है 
नयी मशीनों के लिए नई जगह बनानी है 
पुरानी को हटाने की जुगत भी लगानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

बिक्री बढ़ गयी तो लालसा बढ़ जानी है 
अभी बहुत कम हुई थोड़ी और बढ़ानी है 
अभी एक और नयी जुगत भी लगानी है
थोड़ा मनमानी थोड़ी करनी बेईमानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

तुम्हारे सपनों में नई नयी चिप लगानी है 
आगे बढ़कर हमने यह बात भी बतानी है 
तुम हमारे शीर्ष रत्न तुमसे ही जवानी है  
तदबीर और तस्वीर दोनों ही दिखानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

चिंता करो पर बात समझ नहीं आनी है 
पैसा तो हाथों की मैल है आनी जानी है 
जितना मर्जी कमाओ सारी बंट जानी है 
मसला यह है कि क़िस्मत भी अन्जानी है 
मैं सोच रहा हूँ कि बिक्री क्यों बढ़ानी है

याद आया यह बात तो बहुत पुरानी है 
अब तो हमने करनी अपनी मनमानी है 
खुदा ने जिस शौहरत से हमें नवाज़ा है 
उसी शौहरत में ही अदा भी दिखानी है 
सोच रहा हूँ इसीलिए बिक्री बढ़ानी है

उसने मुझको संगठित परिवार दिया है 
भार दिया है उसका आधार ही दिया है 
उसकी डफ़ली है हमने ही तो बजानी है 
फिर कैसा तकल्लुफ़ कैसी परेशानी है 
सोच रहा हूँ इसीलिए बिक्री बढ़ानी है

मैं फलू फूलूँगा तो मेरा परिवार फलेगा 
किलकारियां गूँजेगी हरपल याद रहेगा 
उसने दिया हुआ उसकी ही मेहरबानी है 
उसकी धुन है हमने तो केवल सजानी है 
सोच रहा हूँ इसीलिए बिक्री बढ़ानी है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”