A-370 कहानीकार 25.5.18--1.39 AM
हम सभी एक कहानीकार ही हैं
और कहानियाँ ख़ूब बना रहे हैं
और इस बात से वाकिफ़ भी हैं
फिर भी यह सब से छुपा रहे हैं
हम कितने ज्ञानी हो गए सुनकर
यही बात हम सबको बता रहे हैं
कोई सबूत नहीं इस कहानी का
फिर भी हम सबको सुना रहे हैं
नहीं कभी सँवरा न सँवरेगा कभी
फिर भी वही गीत गुनगुना रहे हैं
प्रथा चल पड़ी कहानी बनाने की
हम तो केवल उसको निभा रहे हैं
नहीं देखा हमने इसके पनपने में
हम कितना कुछ कैसे गवाँ रहे हैं
मान लिया वो सच जो है ही नहीं
उसी सच में हम रिश्ते निभा रहे हैं
कौन सा सच कहाँ रहता है भाई
खुद से धोखा खुद ही खा रहे हैं
पिता पिता नहीं न बच्चे अपने हैं
जिनको स्वयं अपना बता रहे हैं
पति पत्नी भी कहाँ सगे हुए हैं
वो तो केवल रिश्ते निभा रहे हैं
दोस्ती को सच्चा मान लिया तो
दोस्ती भी देखो कैसे निभा रहे हैं
सच मानो "पाली" दफा हो जाये
सब के सब झूठा मुस्कुरा रहे हैं
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
बहुतख़ूब।
ReplyDeleteबहुतख़ूब।
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