Thursday 20 September 2018

A-400 फ़ासला 21.9.18–3.46 AM

हमने जब उम्र की दहलीज़ से निकल कर देखा 
हमने पाया कि फ़ासला अभी तय हुआ ही नहीं 

हम अभी भी वहीँ खड़े और उसी बात पर अड़े है 
लड़कियों के लेकर आज भी अंडे समान सड़े हैं 

आज भी औरत मात्र भोग विलास की जरुरत है 
इन मर्दों का क्या इनकी भला जैसी भी सूरत है 

अप्सरा चाहिए जो अभी अभी स्वर्ग से उतरी हो 
पार्टी मालदार और अमीर खानदान की पुत्री हो 

कभी देखा ही नहीं कि माँ कितनी सुंदर होती है 
अपनी बेटी की पढाई देख क्यों गद्द-गद्द होती है 

माँ ने उसको जन्म दिया तो उसका आगाज़ हुआ 
बिटिया ने संभाला घर तब घर का रिवाज़ हुआ 


भाई को बहन मिली और राखी का त्यौहार हुआ 
ऐसा रिश्ता कहाँ होता है जैसे चरम उपहार हुआ 

माँ बाप की बेटी से घर का सपना साकार हुआ 
जैसे ही वो बड़ी हुई तभी उसका बहिष्कार हुआ

लौट के जब आयी तो कोई न अपना यार हुआ 
अपने ही घर अपनों का परायों सा व्यवहार हुआ

ससुराल में जा बहु बन कैसे यह चमत्कार हुआ 
बहु-बेटी सहज़ अति सुन्दर सपना साकार हुआ 

पत्नी बन फ़र्ज़ निभा जैसे कोई आविष्कार हुआ 
माँ बन ममता लुटाई जब बेटी का अवतार हुआ 

वही माँ और उसी बेटी का पुनः शिलान्याश हुआ 
तब कहीं किसी को इस रिश्ते का अहसास हुआ 

'गोगिया' तू ही बता बेटी न होती तो माँ कहाँ होती 
अगर यह माँ ही न होती तो ये नन्ही जां कहाँ होती 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’


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