Tuesday 25 September 2018

A-402 इंतज़ार 25.9.18--4.46 AM

हमने तुम्हें जाना तुम्हारे इंतज़ार से 
न तेरी मोहब्बत से न तो इकरार से 

हम तब भी अनजान बने रहे तुमसे 
लबरेज़ था ज़िस्म तेरा जब मुझसे 

मैंने तुझको कभी भी आँका ही नहीं 
तेरे अंदर हमने कभी झाँका ही नहीं 

प्यार पर भरोसा किया न किस्म पर 
न तवज्ज़ो न नज़र कभी ज़िस्म पर 

तेरी न की भी न रही गुंजाइश कोई
तेरी हाँ से न उभरी फरमाईश कोई 

तेरे मेरे जिक्र में अब तो सिर्फ मैं हूँ 
आज़मा के देख तेरा हर फ़िक्र मैं हूँ 

गले से लग जाना भी औपचारिक है 
प्यार में ऐसा होना भी वव्यहारिक है 

तुम कहोगी कि तुमने प्यार किया है 
मैं कहूँगा कि हमने इंतज़ार किया है 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’

10 comments:

  1. Excellent to read .. Alfaaz bayaan karte hain gehraayee se

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  2. Vakehi,

    Dil ke kone me chipe khayal ubhar ke aa gaye....

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  3. Excellent poetry. God bless you.

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    1. Thank you so much Sangha Saheb for your ongoing feedback! I appreciate!

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  4. Bahut hi khoobsurat rachna... Mubarakbad sir

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    1. Thank you so much for your wonderful comments! Gogia

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