न तेरी मोहब्बत से न तो इकरार से
हम तब भी अनजान बने रहे तुमसे
लबरेज़ था ज़िस्म तेरा जब मुझसे
मैंने तुझको कभी भी आँका ही नहीं
तेरे अंदर हमने कभी झाँका ही नहीं
प्यार पर भरोसा किया न किस्म पर
न तवज्ज़ो न नज़र कभी ज़िस्म पर
तेरी न की भी न रही गुंजाइश कोई
तेरी हाँ से न उभरी फरमाईश कोई
तेरे मेरे जिक्र में अब तो सिर्फ मैं हूँ
आज़मा के देख तेरा हर फ़िक्र मैं हूँ
गले से लग जाना भी औपचारिक है
प्यार में ऐसा होना भी वव्यहारिक है
तुम कहोगी कि तुमने प्यार किया है
मैं कहूँगा कि हमने इंतज़ार किया है
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
Gazal bahut kamal hai !
ReplyDeleteThank you so Much Manjit Ji
DeleteExcellent to read .. Alfaaz bayaan karte hain gehraayee se
ReplyDeleteThanks for you wonderful comments!
DeleteVakehi,
ReplyDeleteDil ke kone me chipe khayal ubhar ke aa gaye....
Thanks for your appreciation!
DeleteExcellent poetry. God bless you.
ReplyDeleteThank you so much Sangha Saheb for your ongoing feedback! I appreciate!
DeleteBahut hi khoobsurat rachna... Mubarakbad sir
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful comments! Gogia
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