Saturday 6 October 2018

A-404 पीछे पीछे 7.10.18—3.45 AM

मैं तेरे पीछे-पीछे आता रहा तू मुझसे दूर-दूर जाती रही 
मैं तुमको समझाता रहा और तू मुझको समझाती रही 

सारी नादानियां जैसे समझदारी में तबदील हो गईं थी 
और इसी समझदारी में वो बातें कहीं लील हो गईं थी 

तेरी बातों में छुपा था प्यार व् प्यारा सा हसीन सपना 
गुदगुदी सी होती सपनों में जैसे छेड़ रहा कोई अपना 

तू इतनी भी नादां नहीं कि छेड़ न सके प्यार भरी बातें 
हम ऐसे भी नहीं कि भूल गए अपनी प्यारी मुलाकातें 

कैसा सबब था तेरे होने में और कितनी वफ़ादारी थी 
मैंने भी कभी परेशान न किया कितनी समझदारी थी 

यारों की महफ़िलों में हम तुमसे कितनी बार मिले थे 
बड़ी हसरत थी सहज़ रिश्ते बड़ी मजबूती से सिले थे 

कितने आतुर होते थे हम एक दूसरे से हार जाने को 
फिर हार का जश्न मनाते थे एक दूसरे को पाने को 

बड़ी हसरत रही कि तुम केवल-केवल हमारे ही होते 
तुम मेरी बाँहों में होती और हम भी केवल तुम्हारे होते 

फिर वक़्त क़ाबिज़ हुआ तुम्हें मुझसे दूर ले जाने को 
हम बड़े बेबस हुए और बहुत तड़पे बस तुम्हें पाने को 

ऐसी कौन सी बात थी ‘गोगिया’ कि तुम बता न सके  
ख़ुद क्यों रोते रहे और उसको क्यों तुम रुला न सके 


Poet Amrit Pal Singh Gogia

6 comments:

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    1. Thank you so much Sir! for your valuable feed back!

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  2. बहुत ही सुन्दर कविता है सर अति सुन्दर अति सुन्दर आपको सादर अभिवादन

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    1. Thank you so much for your wonderful comments. It inspires me. Kindly let me know your identification. Gogia

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