आँख खुलती है तो कहाँ जाते हो तुम
बन्द आँखों की नियामत बन जाते हो
जिस्म फ़िरोशी को याद आते हो तुम
बेशक़ आज तुम हमारे बीच नहीं रहते
भला कैसे कहूँ नहीं याद आते हो तुम
जुदाई का मतलब गाहे मौत होता था
खुद भी तड़पते हो हमें तड़पाते हो तुम
हम नहीं समझ पाए आजतक तुमको
फिर भी कितना सम समझाते हो तुम
पर आज जब कि मैं उलझन में भी हूँ
कुछ सुनते भी नहीं न समझाते हो तुम
तेरे बिना तो ज़िन्दगी नीरस हो गयी है
फिर ख्यालों में क्यों बस जाते हो तुम
मेरे सपनों में आकर गले लग जाते हो
फिर सामने क्यों नहीं आ जाते हो तुम
मीठी याद बन कर समा जाते हो तुम
आँख खुलती है तो कहाँ जाते हो तुम
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
ज़िन्दगी की राह मैं रास्ते बदल जाते हैं
ReplyDeleteवक्त की अंधी मैं इंसान बदल जाते हैं।
सोचते हैं की तुम्हे इतना याद ना करें लेकिन
आंखे बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं।
बहुत ही सुन्दर कविता है सर l
ReplyDeleteदर्दे दिल की दवा कौन करे l
बेवफाई से निजात पाने की दुआ कौन करे ll
DhireDhir की ओर से शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏🙏
धीरेंद्र जी आपने क्या ख़ूब लिखा है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteधीरेन्द्र सिंह की शुभकामनाएं स्वीकार करेंगे ll
ReplyDelete🙏🎆🤘🤘🤘🤘🤘
आप भी बहुत ख़ूब लिखते हो। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteFull of emotions. Very good.
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