Thursday 18 October 2018

A-187 सुंदर फिजायें 17.10.18--3.59 AM

कली फूलों जैसी महक रही है 
फ़िज़ा भी खुलकर चहक रही है
मदमस्त जवानी अपनी मस्ती 
फिर भी वो कितनी सहज़ रही है 

कैसे दिखें ऐसी सुंदर फिजायें 
जहाँ दिखें इतनी सुन्दर अप्सराएं
दिल कहे कि हम बार बार आएं 
यह भी कहे कि चलो मुस्कराएँ

चेहरे के रंगत भी एक फ़िज़ा है 
सिन्दूरी रंग जैसे उसकी सज़ा है 
किरण एक उम्मीद की जाई है 
सुनहरे रंगों के संग हुई बिदाई है 

कहाँ मिलता है जमीं से आसमाँ 
कहाँ मिले इतना सुन्दर कारवाँ
कहाँ मिलते हैं हवाओं के बुल्ले 
कहाँ मिलते हैं दतवन ये कुल्ले

कहाँ मिलता है इतना भी समाँ 
घूमता व् दिखता हो सारा जहाँ
कली फूल बन खिलती  जहाँ 
कद्रदान भी मिल जाता हो वहाँ

मिलता हो पंछियों का खज़ाना 
हवा में लहरा उनका बल खाना 
ऊँची उड़ान से तिरते हुए आना 
एक ही सीध एक जुट हो जाना

टहनिओं पर बैठना व् इतराना  
एक के उड़ने से सब ने उड़ जाना 
घूम-घूमकर फिर वापस आना 
शोर मचाना फिर सबको बताना 

चले भी आओ मेरे आग़ोश में 
जिंदगी जानो रहकर थोड़े होश में
गोगिया जी-लो थोड़े जोश में 
वरना जीना पड़ेगा पशम-पोश में

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’


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