Tuesday, 30 October 2018

A-411 गरीबी 29.10.18--2.59 AM

मेरे खुदा गरीबों को सदा महफ़ूज़ रखना 
गरीबी को इन गरीबों से थोड़ा दूर रखना 
गरीबों की गरीबी से सारा जहां चलता है 
पर इनको इन की मुसीबतों से दूर रखना 

इनकी मज़बूरी है जो ये दिहाड़ी कमाते हैं 
दरबों में बैठे हैं फिर भी तेरे गुण ये गाते हैं 
इनको शिकायत नहीं कि तुमने क्या दिया 
ये तो किस्मत ही ढोते किस्मत ही खाते हैं 

इनके पर्व त्यौहार भी अमीरों पर निर्भर हैं 
सज्जनों की सुनते हैं और वही दोहराते हैं 
इनका वज़ूद भी सज्जनों ने छीन लिया है 
फिर भी यह गुणगान भी उन्हीं का गाते हैं 

नहीं कोई धर्म इनका ये सब को सुहाते हैं 
जो भी रख लेता है ये उसी के कहलाते हैं 
पैसों से मोह भी नहीं बस इनकी जरुरत है 
कमाने का तरीका जो भी हो करते जाते हैं 

बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा खुद उठाते हैं 
सुबह जल्दी उठकर शाम को लेट आते हैं 
इसके बच्चे को पता भी नहीं चलता है कि 
मेरे पापा कब आते हैं व् कब चले जाते हैं 

घूमना फिरना तो रविवार का ही बनता है 
सारा परिवार एक होकर प्रोग्राम बनाते हैं 
ग़र रविवार को भी ड्यूटी करनी पड़े जाये 
तो नाराज़ बीबी बच्चों की डांट भी खाते हैं 

बिमारियों से निपटना इनको खूब आता है 
ग्लूकोस का पानी भी यह खूब चढ़वाते हैं 
अच्छे डॉक्टर की सलाह इनको मत देना 
यह तो ESI के नाम से भी घबरा जाते हैं 

नशाखोरी के नाम सिर्फ तम्बाकू चबाते हैं 
बच्चे के दूध के नाम की बीड़ी पी जाते हैं 
बीबी की बीमारी के नाम चिढ़ना बनता है 
क्यों कि नशे के पैसों से इलाज़ कराते हैं 

ग़रीबी वो नहीं जो मात्र पैसों से होती है 
तन का कपड़ा या पेट की रोटी होती है 
जो न देख सके अपनी सेहत की हालत 
ऐसी सोच सबसे ज्यादा ग़रीब होती है 

मेरे खुदा गरीबों को सदा महफ़ूज़ रखना 
गरीबी को इन गरीबों से थोड़ा दूर रखना 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia”




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