Tuesday 11 September 2018

A-396 इज़हार न कर 12.11.18--7.40 AM

आज ख़ुद अपने दर्द का इज़हार न कर 
बात नहीं बनेगी इसीलिए ऐतबार न कर
अपनों पर स्वयं का भरोसा कहाँ होता है 
दर्द सहन कर लो ज़िन्दगी दुश्वार न कर 

अपने लगने वाले भी अपने कहाँ होते हैं 
ग़ैरों संग रहना सीख बरबस प्यार न कर 
प्यार के लम्हों ने ही तो दर्द दिया तुमको 
उनसे जुदाई ले लो ज़िंदगी ख़राब न कर 

भरोसा पल-भर का भी बहुत ज्यादा है 
श्वासों के चले आने का इंतज़ार न कर 
एक के आते ही तो दूजा चला जाता है 
उनके इस ढर्रे में ख़ुद को बेक़रार न कर 

आने-जाने की गुफ़्तगू आदि से पुरानी है 
नहीं कोई अपना है नहीं कोई सयानी हैं 
अपने अपने हिस्से का दर्द हमने लेना है 
बाकी सब झूठ है बाकी सब कहानी है 

बेशक़ क़रीब आकर कसमें वादे भी करे 
समझ जाओ वो कसमें मात्र बेईमानी है 
वादों को निभाने की रस्म रस्म ही रहेगी 
उनकी प्यारी अदा तो केवल ज़िस्मानी है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’



2 comments:

  1. Wah,wah,Pali ji,कितनी सच्ची और सटीक बात कही। यही जिन्दगी है जिससे हम वाकिफ है। पर सच यह भी की अपने अंदर का इंसान तो सम भाव सम दृष्टि में आ के इस दर्द से उभर के खुशी और उल्लास का जीवन जी सकता है।

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  2. बहुतख़ूब जीवन के तथ्यों का सार और उसके
    बयां का अंदाज़ काबिले तारीफ़ है।

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