दिल भी दीवाना हुआ हिचकोले खाने लगा है
कभी इस टहनी तो कभी उस टहनी का सफर
मदमस्त टहनियाँ टिकोला नज़र आने लगा है
टिकोलों से आती है महकती सोंधी सी ख़ुश्बू
मंझर से बनता हुआ आम नज़र आने लगा है
कलियों पर मँडराते आवारा भंवरों का जमघट
नादान जवानी को मदिरा का रस भाने लगा है
चिड़ियों की चाहत से राही वाकिफ़ है ही नहीं
मगर उनके संगम का दृश्य नज़र आने लगा है
लैला मजनू के किस्से सारी खुदाई जानती है
मग़र प्रेमियों को वही डर अब सताने लगा है
सुर संगम के सप्त स्वर बेशक़ उदास बैठे हो
मगर रंगीन महफ़िल हो कोई ज़माने लगा है
उन्होंने अभी तो पीछे मुड़कर देखा भी नहीं है
उनका क़रीब होने का अहसास आने लगा है
उनके चेहरे की दमक से ख़ुशी जाहिर होती है
उसी ख़ुशी में उनका प्यार नज़र आने लगा है
दिन रात उनकी चिंता में ही निकल जाता है
उनसे मुरौवत है यही किस्सा सताने लगा है
ख़ंजर को कितना भी तेज़ तर्रार कर ले कोई
जुबां से तेज खंजर भला कहाँ आने लगा है
कौन कैसे वाकिफ़ है इससे फर्क नहीं पड़ता
अपना वही है जो वक्त पे काम आने लगा है
गोगिया अब जिद्द न कर उनसे जीत जाने की
तुमको भी तो उनसे हार के मजा आने लगा है
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
बहुतख़ूब एकदम स्टीक बात कही है।
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteबहुतख़ूब एकदम स्टीक बात कही है।
ReplyDeleteK
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