Friday 30 November 2018

A-419 पैमाना 29.11.18--2.13 AM

उतरी शाम तो ख़्वाबों को पर लगने लगेंगे 
शमा के इंतज़ार में परवाने मचलने लगेंगे
पैमानों का जिक्र भी तब आम हो जायेगा 
जब महफ़िल में साक़ी पैमाने भरने लगेंगे 

न कोई पर्दा रहेगा न उसकी आड़ में कोई 
जैसे शराबी रहे पैमाने के जुगाड़ में कोई 
न छिपती ललक जैसे होता प्यार में कोई 
भरोसा मत करो शराबी की बात पर कोई

नशे का कमाल जब चाहे होंठों से लगा लो 
रात आयेगी निंदिया चाहे रात भर सुला लो 
जब उठेगी तो बिना स्वप्न के इक रात होगी 
मूर्छित स्थिति में भी हो रही कोई बात होगी 

हम देखते रह जायेंगे हज़ारों घर उजड़ते हुए 
दीया न बाती होगी फिर भी सब जलते हुए 
जहाँ सकूं भी रहता होगा इक फ़रेब बनकर 
कैसा रहना जब सपने भी दिखें बिखरते हुए 

निंदिया ढूंढे कि दो पल का सकून हो कहीं 
अपनी हदों को जाने और बेईमान मर जाये 
हैवानियत की सारी हदें पार करने से पहले 
काश एक हैवान जो केवल इंसान बन जाये 
  

Poet: Amrit Pal Singh Gogia


Monday 26 November 2018

A-418 झरना 27.11.18--3.34 AM

तुम इतनी अजीज हो मुझे जितना झरने को पानी 
ऐसे रिसता रहता है जैसे कह रहा हो कोई कहानी 

उसके आने के रास्ते का माध्यम नज़र नहीं आता
पर एक-एक बुलबुला जी रहा अपनी जिंदगानी 

बड़ी अज़ीब शर्तें रखी हैं दोनों ने साथ निभाने की 
कोई किसी को रोकेगा नहीं करेंगे अपनी मनमानी 

जिस्मानी छेड़-छाड़ भी बड़ी उम्दा किस्म की होगी 
एक दूसरे के हो जायेंगे जब गिरने लगेंगे बेईमानी 

ज्यों ही सम्हल जायेंगे फिर जुदा-जुदा हो जी लेंगे 
बड़ी नेकदिली से विदाई के पैग़ाम को भी जी लेंगे 

नहीं कोई शिकवा होगा न कोई शिकायत दिखेगी 
खुदा की मर्जी होगी और खुदा की इनायत दिखेगी 

मुस्कुराते चेहरे से विदा होकर हम भी चले जायेंगे 
तुम तटस्थ रहना हम फिर आएंगे और बह जायेंगे 

फिर वही जिस्मानी रिश्ता एक बार फिर निभाएंगे 
यूँ ही मचलेंगे, लिपटेंगे, मुस्कुरायेंगे व् चले जायेंगे 

मगर यह सच है कि ये दिन मुझे बहुत याद आयेंगे 
यादों में तड़प होगी मिलने का वायदा भी निभाएंगे 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’









Sunday 25 November 2018

A-417 तरन्नुम 24.11.18--3.48 PM

मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ 
जिसको सुनते ही बेचैन हो जाता हूँ 
दिल के घाव में तनाव पैदा होता है 
मैं छिप-छिप जाता हूँ नीर बहाता हूँ 

मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ 
जिसे सुनते ही शराबी हो जाता हूँ 
नशे में जब संगीत उमड़ने लगता है 
नयन रिसने लगते हैं नीर बहाता हूँ 

मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ 
जिससे दिल में टीस उठती है कहीं 
फिर मैं उसको स्वयं से छिपाता हूँ 
जब तू मिल जाये तुमको बताता हूँ 

मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ 
ख़ुशी और गम समझ नहीं पाता हूँ
दिल पर बोझ जब सहन नहीं होता 
उखड़ा हुआ दर्द खुद ही छिपाता हूँ 

जब तुझको देखूं और मुस्कुराता हूँ 
हर शब्द को तरन्नुम में गुनगुनाता हूँ 
दिवाना कर देता है जब प्यार सनम 
मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ 



Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’

Wednesday 21 November 2018

A-416 ख़ूबसूरती 22.11.18--1.11 AM

मैं तेरी ख़ूबसूरती का कैसे इज़हार करूँ 
कैसे तेरे हर एक अंग अंग की बात करूँ 
जिस अंग को निहारूँ वहीं फँस जाता हूँ
अगला रास्ता भला कैसे इख़्तियार करूँ 

तुमको निहारूँ या तेरी अदाओं को चुनूँ 
तेरी मदमस्त अदाओं की जब बात करूँ 
तेरी हर अदा मोह पाश में समेट लेती है 
सिमट गया भला कैसे अब इज़हार करूँ 

बला की ख़ूबसूरत ज़िस्मानी मूर्त हो तुम 
अंगिया को निहारूँ या जब सम्वाद करूँ
उलझन है दोनों आपस में उलझ जाते हैं 
कैसे इंतियाज़ करूँ किस से विवाद करूँ 

तेरा सफ़ेद सिल्क सा चिकना तन-बदन 
हर रोम रोम इतराये कि कोई बात करूँ 
मुझे पता है ज़िस्म पर खरोंच आ जायेंगे 
मगर डरता हूँ अब कि कैसे सम्वाद करूँ 

तेरे होने के अन्दाज़ भी कम निराले नहीं 
कैसे मैं किसी को भी नज़र अन्दाज़ करूँ 
तेरी कटीली हँसी तो कभी संजीदा आँखें 
अब कैसे मैं किसी एक पर ऐतबार करूँ 

मैंने ढेरों रास्ते ढूंढे मगर एक भी न चला 
किसी नये रास्ते का रास्ता इज़ाद करूँ 
अब तू ही बता भला इतनी पाबंदिओं में 
मैं तेरी ख़ूबसूरती का कैसे इज़हार करूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Tuesday 20 November 2018

A-415 पीपनी का शोर 19.11.18--9.28 PM

न रहा दर्द न तो गुमां कोई जब प्यार की तहज़ीब आयी 
प्यार की तमन्ना जो हुई तो सामने से तेरी तस्वीर आयी 

खुले में प्यार का स्वागत हुआ गांठें खुली तासीर आयी 
न रहा प्रमाण मोहब्बत का लगा कि मेरी तक़दीर आयी 

न रही कसक ज़िंदगी में न कोई गम लगा कि ईद आयी 
जुबां में मिठास घुलने लगी जैसे कि मेरी दहलीज़ आयी 

अँधेरे में रहकर ही रोशनी की तलब हुई तब दीद आयी 
अब अँधेरे से कैसा शिक़वा वह था तभी तहज़ीब आयी 

अब काहे का दर्द और कौन सी पीपनी का शोर ज्यादा 
प्यार के सम सब फ़ीका है इस बात की तरतीब आयी 


Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’