शमा के इंतज़ार में परवाने मचलने लगेंगे
पैमानों का जिक्र भी तब आम हो जायेगा
जब महफ़िल में साक़ी पैमाने भरने लगेंगे
न कोई पर्दा रहेगा न उसकी आड़ में कोई
जैसे शराबी रहे पैमाने के जुगाड़ में कोई
न छिपती ललक जैसे होता प्यार में कोई
भरोसा मत करो शराबी की बात पर कोई
नशे का कमाल जब चाहे होंठों से लगा लो
रात आयेगी निंदिया चाहे रात भर सुला लो
जब उठेगी तो बिना स्वप्न के इक रात होगी
मूर्छित स्थिति में भी हो रही कोई बात होगी
हम देखते रह जायेंगे हज़ारों घर उजड़ते हुए
दीया न बाती होगी फिर भी सब जलते हुए
जहाँ सकूं भी रहता होगा इक फ़रेब बनकर
कैसा रहना जब सपने भी दिखें बिखरते हुए
निंदिया ढूंढे कि दो पल का सकून हो कहीं
अपनी हदों को जाने और बेईमान मर जाये
हैवानियत की सारी हदें पार करने से पहले
काश एक हैवान जो केवल इंसान बन जाये
Poet: Amrit Pal Singh Gogia