ऐसे रिसता रहता है जैसे कह रहा हो कोई कहानी
उसके आने के रास्ते का माध्यम नज़र नहीं आता
पर एक-एक बुलबुला जी रहा अपनी जिंदगानी
बड़ी अज़ीब शर्तें रखी हैं दोनों ने साथ निभाने की
कोई किसी को रोकेगा नहीं करेंगे अपनी मनमानी
जिस्मानी छेड़-छाड़ भी बड़ी उम्दा किस्म की होगी
एक दूसरे के हो जायेंगे जब गिरने लगेंगे बेईमानी
ज्यों ही सम्हल जायेंगे फिर जुदा-जुदा हो जी लेंगे
बड़ी नेकदिली से विदाई के पैग़ाम को भी जी लेंगे
नहीं कोई शिकवा होगा न कोई शिकायत दिखेगी
खुदा की मर्जी होगी और खुदा की इनायत दिखेगी
मुस्कुराते चेहरे से विदा होकर हम भी चले जायेंगे
तुम तटस्थ रहना हम फिर आएंगे और बह जायेंगे
फिर वही जिस्मानी रिश्ता एक बार फिर निभाएंगे
यूँ ही मचलेंगे, लिपटेंगे, मुस्कुरायेंगे व् चले जायेंगे
मगर यह सच है कि ये दिन मुझे बहुत याद आयेंगे
यादों में तड़प होगी मिलने का वायदा भी निभाएंगे
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
Kamaal ke tasawwaraat hein
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feed back! Gogia
DeleteSo good to read ... well chosen words ..
ReplyDeleteइस खूबसूरत कविता के लिए तहेदिल से आप को अभिनंदन।
ReplyDeleteरिश्ते बनाना इतना आसान होता है जैसे मिट्टी से मिट्टी पर मिट्टी लिखना।।
लेकिन रिश्ते निभाना उतना ही मुश्किल होता है जैसे पानी पर पानी लिखना।।
Excellent creation.
ReplyDeleteThanks a lot for your appreciation!
DeleteThank you so much for wonderful appreciation! Gogia
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