Monday 26 November 2018

A-418 झरना 27.11.18--3.34 AM

तुम इतनी अजीज हो मुझे जितना झरने को पानी 
ऐसे रिसता रहता है जैसे कह रहा हो कोई कहानी 

उसके आने के रास्ते का माध्यम नज़र नहीं आता
पर एक-एक बुलबुला जी रहा अपनी जिंदगानी 

बड़ी अज़ीब शर्तें रखी हैं दोनों ने साथ निभाने की 
कोई किसी को रोकेगा नहीं करेंगे अपनी मनमानी 

जिस्मानी छेड़-छाड़ भी बड़ी उम्दा किस्म की होगी 
एक दूसरे के हो जायेंगे जब गिरने लगेंगे बेईमानी 

ज्यों ही सम्हल जायेंगे फिर जुदा-जुदा हो जी लेंगे 
बड़ी नेकदिली से विदाई के पैग़ाम को भी जी लेंगे 

नहीं कोई शिकवा होगा न कोई शिकायत दिखेगी 
खुदा की मर्जी होगी और खुदा की इनायत दिखेगी 

मुस्कुराते चेहरे से विदा होकर हम भी चले जायेंगे 
तुम तटस्थ रहना हम फिर आएंगे और बह जायेंगे 

फिर वही जिस्मानी रिश्ता एक बार फिर निभाएंगे 
यूँ ही मचलेंगे, लिपटेंगे, मुस्कुरायेंगे व् चले जायेंगे 

मगर यह सच है कि ये दिन मुझे बहुत याद आयेंगे 
यादों में तड़प होगी मिलने का वायदा भी निभाएंगे 

Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’









7 comments:

  1. Replies
    1. Thank you so much for your wonderful feed back! Gogia

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  2. So good to read ... well chosen words ..

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  3. इस खूबसूरत कविता के लिए तहेदिल से आप को अभिनंदन।
    रिश्ते बनाना इतना आसान होता है जैसे मिट्टी से मिट्टी पर मिट्टी लिखना।।
    लेकिन रिश्ते निभाना उतना ही मुश्किल होता है जैसे पानी पर पानी लिखना।।

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  4. Thank you so much for wonderful appreciation! Gogia

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