जिसको सुनते ही बेचैन हो जाता हूँ
दिल के घाव में तनाव पैदा होता है
मैं छिप-छिप जाता हूँ नीर बहाता हूँ
मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ
जिसे सुनते ही शराबी हो जाता हूँ
नशे में जब संगीत उमड़ने लगता है
नयन रिसने लगते हैं नीर बहाता हूँ
मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ
जिससे दिल में टीस उठती है कहीं
फिर मैं उसको स्वयं से छिपाता हूँ
जब तू मिल जाये तुमको बताता हूँ
मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ
ख़ुशी और गम समझ नहीं पाता हूँ
दिल पर बोझ जब सहन नहीं होता
उखड़ा हुआ दर्द खुद ही छिपाता हूँ
जब तुझको देखूं और मुस्कुराता हूँ
हर शब्द को तरन्नुम में गुनगुनाता हूँ
दिवाना कर देता है जब प्यार सनम
मैं तरन्नुम में तेरा गीत वही गाता हूँ
Poet: Amrit Pal Singh ‘Gogia’
Nice 1
ReplyDeleteThanks Neelam!
DeleteNice ... regards
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feedback. Please disclose your identity! Gogia
DeleteYou are great Sir
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feedback. Please disclose your identity! I will be obliged. Gogia
DeleteGreat.. yet another masterpiece from the genius
ReplyDeleteThank you so much Pankaj Ji for your wonderful feedback. Gogia
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful feed back! Thanks! Gogia
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteएक नया प्रयास जो मन को भा गया।
ReplyDelete🙏
एक नया प्रयास जो मन को भा गया।
ReplyDelete🙏