कैसे तेरे हर एक अंग अंग की बात करूँ
जिस अंग को निहारूँ वहीं फँस जाता हूँ
अगला रास्ता भला कैसे इख़्तियार करूँ
तुमको निहारूँ या तेरी अदाओं को चुनूँ
तेरी मदमस्त अदाओं की जब बात करूँ
तेरी हर अदा मोह पाश में समेट लेती है
सिमट गया भला कैसे अब इज़हार करूँ
बला की ख़ूबसूरत ज़िस्मानी मूर्त हो तुम
अंगिया को निहारूँ या जब सम्वाद करूँ
उलझन है दोनों आपस में उलझ जाते हैं
कैसे इंतियाज़ करूँ किस से विवाद करूँ
तेरा सफ़ेद सिल्क सा चिकना तन-बदन
हर रोम रोम इतराये कि कोई बात करूँ
मुझे पता है ज़िस्म पर खरोंच आ जायेंगे
मगर डरता हूँ अब कि कैसे सम्वाद करूँ
तेरे होने के अन्दाज़ भी कम निराले नहीं
कैसे मैं किसी को भी नज़र अन्दाज़ करूँ
तेरी कटीली हँसी तो कभी संजीदा आँखें
अब कैसे मैं किसी एक पर ऐतबार करूँ
मैंने ढेरों रास्ते ढूंढे मगर एक भी न चला
किसी नये रास्ते का रास्ता इज़ाद करूँ
अब तू ही बता भला इतनी पाबंदिओं में
मैं तेरी ख़ूबसूरती का कैसे इज़हार करूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia
जिसके जहन में प्यार ही प्यार भरा हो वो ही इतना अच्छा लिख सकता है ।
ReplyDeleteRomantic and nice
ReplyDeleteThank you so much Neelam for your comments! Gogia
DeleteThank you so much for your wonderful feed back. Gogia
ReplyDeleteआप की दूरदर्षिता क़ाबिले तारीफ़ है
ReplyDeleteकुछ कहने को जी करता है
सच्चा प्यार ईश्वर कि तरह होता है, जिसके बारे में बातें तो सभी करते हैं लेकिन महसूस कुछ ही लोगों ने किया होता है।
अपनी लेखनी को कभी विराम मत देना यही ईश्वर से पप्रार्थना है।
Thanks Arora saheb for your loving prayer! Gogia
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