शहर में आग लगी और वो गुनगुना रहे हैं  
कुछ आंसू बहा रहे हैं कुछ मुस्कुरा रहे हैं  
यह कैसा रिश्ता मानव का जमहूरियत से 
किसी के पांव बेड़ी कुछ जश्न मना रहे हैं 
घर फूकने वाले आखिर क्या दिखा रहे हैं 
कि वो जीत गये या दूसरों को हरा रहे हैं 
जिनके घर आग लगी उनसे पूछो तो जरा 
उन पर हुए सितम से कितना कराह रहे हैं 
इंसान भी कितना अंधा हो चुका है नशे में  
अपने ही भाई का खून बहाते ही जा रहे हैं 
स्याह कालिख उड़कर जब पड़ी आँखों में 
राजनेता भी मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं 
मत कर मग़रूर तू किसी जाति के होने का 
जाति धर्म ही तो है जो मानवता खा रहे हैं 
जहर बना था इंसान को बचाने के लिए 
अब इंसान ही इंसानियत से टकरा रहे हैं 
तुम कब तक तमाशा देखते रहोगे 'पाली' 
सब अपना-अपना मतलब ही सधा रहे हैं 
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

Sat shri akaal ji ਆਪ ਤੋ ਕਿਤਨਾ ਦਰਦ ਛਿਪਾਏ ਬੈਠੇ ਹੈੰ ਕੁਛ ਸੱਤਾ (ਰਾਜ ਗੱਦੀ)ਪਾ ਲੇਨੇ ਕਾ ਨੱਸ਼ਾ ਜੱਤਾ ਰਹੇ ਹੈੰ ਕੁਛ ਸੱਤਾ ਪਾਨੇ ਕੋ ਲੱਲਚਾ ਰਹੇ ਹੈੰ ਬੱਸ ਆਵਾਮ ਹੀ ਪਿਸੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹੈੰ
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