मैं हिन्दी हूँ -18.9.15—4.24PM
A-061 मैं हिंदी हूँ -18.9.15—4.24PM
मैं हिंदी हूँ
भारत की राष्ट्रभाषा हूँ
हर घर की मातृभाषा हूँ
मैं संविधान में पली हूँ
मैं यहाँ सबसे बड़ी हूँ
बहुत आदर है सम्मान है
देश का भी तो यही फरमान है
इतना प्यार देखकर मन भर आया है
घर बैठे-बैठे मन बहुत घबराया है
सोचा !!!! थोड़ी सैर ही कर आऊँ
सबसे पहले मैं
संविधान से बाहर निकली
मिल गयी मुझे एक प्यारी सी तितली
हाय हाय करती बाय बाय करती
तभी उसकी जुबान फिसली
सॉरी-सॉरी करती वह दूर निकल गयी
तभी मेरी नज़र
एक चपड़ासी पर फिसल गयी
सूट-बूट ऐसे जैसे अंग्रेज की औलाद हो
इंग्लिश टूटी फूटी जैसे वही संवाद हो
मैं वहाँ से भागी स्कूल जा मरी
वहां पहुँच मैं औंधे मुँह गिरी
स्कूल हिंदी का, लिखा इंग्लिश में था
हिंदी मीडियम
मैं हैरान थी परेशान थी
जो भाषा देश की शान थी
उसके दर्द से जनता अनजान थी
बच्चे बोलें डांट पड़ती है
टीचर बोले तो गाज़ गिरती है
हिंदी बोले तो बच्चे गवाँर हैं
अंग्रेजी बोले तो बच्चे स्मार्ट हैं
विद्यालय से स्कूल हो गया
महाविद्यालय कॉलेज हो गया
विश्व विद्यालय यूनिवर्सिटी हो गया
सब काम अंग्रेजी में करते हो
उसी में अपनी शान समझते हो
गालियां तक तो अंग्रेज़ी में निकालते हो
माफीनामा भी अंग्रेज़ी में निपटाते हो
फिर भी हिंदुस्तानी कहलाते हो
तुमने तो सारी दुनिया ही बदल डाली
माँ को मम्मी बना दिया
मम्मी का मतलब भी जानते हो
लाश को संभाल के रखो
तो वो मम्मी कहलाती है
तुमने मुझे भी लाश बना दिया है
इसीलिए तो हिंदी दिवस मनाते हो
जो रोज़ पूजी जानी चाहिए थी
साल में एक बार धूप बत्ती दिखाते हो
कभी कभी दीप माला भी जलाते हो
यह काम तो केवल लाश के लिए किये जाते है
मरने के बाद स्मरण किये जाते है
तुम कातिल हो तुमने मुझे मारा है
तुम कातिल हो तुमने मुझे मारा है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”