Sunday 6 September 2015

A-138 वो तुम्ही तो हो -4.7.15 10.05 PM

वो तुम ही तो हो 4.7.15--10.05
वो सुबह का नज़ारा रवि का फव्वारा
हवा भी निराली सारे जहां की माली
बादलों के घेरे करते जाते जब अँधेरे
बारिश जब थमकर आये साँझ सवेरे

वो शीतल हवाऐं, महकती फिजायें
पंछी गीत गायें या फिर शोर मचाएं
फुदकती जाएं वो कुदरती अप्सराएं
ठुमक ठुमक चलती हैं उनकी अदायें

वो मधुर गीत गायें सब को रिझायें
उनको देखकर तो फूल भी मुस्कराएं

झरनों का शोर करे है कितना जोर
मन क्यों होता है इतना भाव भिवोर
बूँद बूँद में लगी कैसे नाचने की होड़
दूसरे को भगाती बिना लगाये जोर

पत्थरों से टकराती गिर गिर जाती
नहीं होती परवाह फिर संभल जाती
चल पड़ती फिर नए सफर की ओर
सहजता ही बनी है उनकी बाग़डोर

इतनी सहजता में वो तुम ही तो हो। …… वो तुम ही तो हो 

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