Tuesday 1 September 2015

A-078 तू-तू मैं-मैं का अपना ही स्वाद है 26.8.15--5.29 PM

A-078 तू-तू मैं-मैं का अपना ही स्वाद है  26.8.15--5.29 PM
तू-तू मैं-मैं का अपना ही स्वाद है 
इसके बिना ज़िंदगी अवसाद है 
ज्यादा मीठा किसी काम का नहीं 
ज्यादा मीठा झगड़े का फ़साद है 

झगड़े करने में कोई बुराई नहीं है 
आपके झगड़े में सच्चाई नहीं है 
झगडे का भी कोई तो कायदा हो 
ज़िंदगी का भी कोई तो वायदा हो 

इस ख़ुदाई में ही सारे विकास हैं 
कुछ आम हैं मगर कुछ ख़ास हैं 
गर हम यहाँ दोनों ही एक जैसे हों 
वहां तरक्की नहीं सिर्फ विनाश है 

झगड़ों में देखो कोई नहीं बुराई है 
सारी तरक्की इसी में बन आयी है
विरोध की झलक न आती नज़र 
माचिस भी न बनती यही सच्चाई है 

सारा जगत आगे बढ़ा इसी विरोध में 
अनेकों शोध हुए बने हुए अवरोध में 
कोई अभी भी खड़ा है उसी विरोध में
एक नयी दिशा नए किस्म के शोध में 

अगर सहमति बन जाती उस पक्ष में 
रुक नहीं जाती ज़िंदगी उसी कक्ष में 
किसी विरोध ने ही तो आगे बढ़ाया है 
उसी विरोध ने ही नया कर दिखाया है 

विज्ञान का बस यही तो चमत्कार है 
विरोध में किया गया ही अविष्कार है 
रुक जाता अगर वैज्ञानिक जो कहीं 
न होता कोई करिश्मा जो वैध है कहीं 

झगड़ों में ख़ुद को साबित कर रहे हो 
साबित करने के तो और भी तरीके हैं 
कुछ झगडे भी हमारे प्यार सरीके है 
सांसारिक सुख उसके आगे फीके हैं 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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