Saturday 5 September 2015

A-043 एक वट वृक्ष के नीचे-4.9.15—11.12 AM

एक वट वृक्ष के नीचे, गाँव के चौपाल पर
संध्या की ताल पर, जिंदगी के हाल पर

कुछ हँसते हुए, कुछ मुस्कराते हुए
कुछ ठहाके मारते, सबको हिलाते हुए

कुछ गुम शुदा इंसान हैं, कुछ मुरझाये हुए
कुछ मरे हुए, कुछ मार खाये हुए

कुछ गुनगुनाते हैं, कुछ गीत गाते हैं 
कुछ शकून के पहरे में, सब कुछ सहज पाते हैं

कुछ दुखों को झेलते हुए, कुछ जिंदगी को पेलते हुए
कुछ चिंताओं के घेरे में, कुछ घोर अँधेरे में

कुछ बैठे हैं चोट खाए हुए, शेर पर चढ़कर आये हुए
कुछ खुद को गिराये हुए, जिंदगी से तंग आये हुए

कुछ चेहरे छुपाये हुए, कुछ आँसू बहाये हुए
कुछ होश गवाये हुए, कुछ होश में आये हुए

कौन सी जिंदगी ढूँढ़ते हो, तुमको किसकी तलाश है
या वो समां ढूँढ़ते हो, जो बहुत ही खास है

जिंदगी जीने की एक ही कला है
जो है वही है और वही खास है
बस यही एक पल है, बाकी सब बकवास है ….बाकी सब बकवास है 
  

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