A-227 बहुत पीड़ा है जेहन में 6.1.17--5.03 AM
बड़ी पीड़ा है जेहन में  
किसको बताऊँ 
किसको दिखाऊं 
किसको सुनाऊँ 
किस से छुपाऊँ 
बड़ी पीड़ा है जेहन में 
कभी आँखों से टपकती है 
कभी नैनों में झलकती है 
कभी चेहरे पर नज़र आती है 
कभी मुस्कराहट बन जाती है 
बड़ी पीड़ा है जेहन में 
कभी गला रुँध जाता है 
कभी कम्पन समाता है 
कभी बेचैनी छा जाती है 
कभी हँस कर दिखाती है 
बड़ी पीड़ा है जेहन में 
कभी प्रार्थना बन जाती है 
कभी किस्से सुनाती है 
कभी उदासीन हो जाती है  
कभी खुद को समझाती है 
बड़ी पीड़ा है जेहन में 
क्या पड़ा है किस्से कहानियों में 
मुर्द पड़ी जज्बाती निशानियों में 
न जाने कब की वो मर चुकी हैं 
जीवित हैं मेरी ही कहानियों में ... 
जीवित हैं मेरी ही कहानियों में …
Poet: Amrit Pal Singh Gogia

VERY NICE
ReplyDeleteThank you so much Sir! Each time you inspire me.
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