Friday, 31 March 2017

A-261 झूठी है जिंदगी 27.3.17--9.31 AM

A-261 झूठी है जिंदगी 27.3.17--9.31 AM

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
बन के रहो अपने या रहो बेगाने 
तरन्नुम में रहो गाकर वही तराने 
रिश्ते तो केवल पड़ते हैं निभाने 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

मोती से जड़ो या जड़ दो नगीना 
संतुष्ट न होगी कभी कोई हसीना 
तरन्नुम में गाओ बेशक वही तराने 
रिश्ते तो केवल पड़ते हैं निभाने 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

यौवन की उलझन है ये मयकदा 
इससे दूर रहो या पास रहो सदा 
फ़िदा तुम हुए वो तुम पर फ़िदा 
पूछता नहीं हैं तुमसे ये मयकदा 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

तुम उससे कितना प्यार करते हो 
इज़हार कर के इकरार करते हो 
यह प्यार नहीं इकरार बोलता है 
इकरार भी नहीं हिसाब बोलता है 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

वायदों की लड़ी भी तुमने लगायी 
तुम देखना किस हद तक निभाई 
फिर भी ज्वालामुखी तैयार बैठा है 
तुम कहते हो तुम्हारा प्यार बैठा है 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

समझने को समझते हो सबकुछ 
नहीं रहा जो कहने को अब कुछ 
कितनी घुटी-घुटी बात करते हो 
और कहते हो इजहार करते हो 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

लाख कहो कि वो तेरा है सगा 
मतलब नहीं निकलता है लगा 
तेरी ही माशूकी है तेरे ही तराने 
लगे हो कुछ कहने और सुनाने 

झूठी है जिंदगी झूठे हैं ये पैमाने 
मायने भी तुमको पड़ते हैं बताने 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

Tuesday, 28 March 2017

A-259 बलमा निकला हरजाई 14.2.17--3.15 AM

A-259 बलमा निकला हरजाई 14.2.17--3.15 AM

मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई

मेरा दुःख न जाने कोई  
अँखियों में नीर भर सोई 
बातें सखिओं को बताई 
मेरी हुई फिर जग हसांई 

मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई

अँखियाँ भी मैंने बिछाई 
आँखों में नीर भर लाई 
लोगों से छिपती छिपाती 
घूँघट में छिप छिप आयी 

मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई

मैं डरी थी बहुत घबराई 
सखिओं से बात छिपाई 
फिर भी नहीं आये बलमा 
फिर हुई मेरी जग हंसाई 

मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई

रात भर नींद न आयी 
रैना बीती संग तन्हाई 
मेरा दुःख मैं ही जानूँ 
जब से अँखियाँ लड़ाई 

मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali'



Sunday, 26 March 2017

A-258 मत कर खिलवाड़ तू आँसूओं से 26.3.17--3.19 PM

A-258 मत कर खिलवाड़ तू आँसूओं से 26.3.17--3.19 PM

मत कर खिलवाड़ तू आँसूओं से
यह मोती फिर हाँथ नहीं आयेगा 
लाख कोशिश करो इसे पाने की 
पारा बन के मोती बिखर जायेगा 
मत कर खिलवाड़ …………..

बड़ा अदब होता है इन आँसूओं में 
एक-एक कर, बारी-बारी आएगा 
एक की पारी जब ख़त्म हो जाये 
दूसरा अपना चेहरा तब दिखाएगा 
मत कर खिलवाड़ …………..

अज़ीब दास्ताँ है हर एक आँसू की 
हर हाल में आपका साथ निभाएगा 
गम किसी के बिछुड़ने का हो जब 
चेहरे को छूता हुआ सरक जायेगा 
मत कर खिलवाड़ …………..
आपका गम भली भाँति समझता है 
आपका दर्द लोगों तक पहुँचाएगा 
आप किस दौर से निकल रहे हैं 
हर इंसान खुद ही समझ जाएगा 
मत कर खिलवाड़ …………..

किसी की ख़ुशी जब तरतीब हो 
तब यह आँखों में चमक लाएगा 
गम और ख़ुशी जब मिल रहे हों 
कभी आएगा कभी छुप जाएगा 
मत कर खिलवाड़ …………..

बड़े नाज़ुक मिजाज होते हैं यह भी 
अपना कर्ज यह खुद ही चुकाएगा 
बड़े चैतन्य होते हैं बड़े दिल वाले 
हर मौके पूरा पूरा साथ निभाएगा 
मत कर खिलवाड़ …………..

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

Saturday, 25 March 2017

A-257 कभी ज़रूरत हो 24.3.17--7.00 AM

A-257 कभी ज़रूरत हो 24.3.17--7.00 AM

कभी ज़रूरत हो तो शम्मअ जला लेना 
उसकी रोशनी में थोड़ा सा मुस्कुरा लेना 
आँखों की नमी को मुबारक समझ कर 
थोड़ा ही सही पर थोड़ा नीर बहा लेना 

जानता हूँ बिछुड़ना आसान नहीं होता 
बिसरी यादों का रंग थोड़ा बचा लेना 
उसी रंग की बदौलत दुनिया बची है 
उन्हीं रंगों संग थोड़ा सा मुस्कुरा लेना 

कभी नफ़रत भी कोई रंग दिखा न सकी 
अपनी चाहत की उमंग थोड़ी जगा लेना 
हमने भी तुमको चाहा है सदा के लिए 
न चाहो बेशक पर देखकर मुस्कुरा लेना 

इतने नगुज़ार नहीं कि कोई चाहे ना हमें 
वक़्त आएगा सब्र को थोड़ा आज़मा लेना 
तेरे इरादों पर मुझे कोई शक नहीं है मगर 
अपने इरादों को थोड़ा सा ऊपर उठा लेना 

बहुत मुमकिन है कोई तस्वीर मिल जाये 
उस तस्वीर को इक नया जामा पहना लेना  
तस्वीर बदलते ही तक़दीर बदल जाती है 
'पाली' ने कहा है इसको भी आजमा लेना 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Wednesday, 22 March 2017

A-255 गुनाहों के बोझ 22.3.17--9.53AM

A-255 गुनाहों के बोझ 22.3.17--9.53AM 

गुनाहों का बोझ ज़िंदगी बेफ़ायदा हो गयी 
गुनाह माफ़ किये ज़िंदगी कायदा हो गयी 

जिंदगी के आने से गुनाह दरकिनार हो गए 
कुछ रफ़ू चक्कर हुए कुछ मददगार हो गए 

गुनाहों की आपसी गुफ़्तगू का ये आलम 
कुछ मचलने लगे कुछ अख्तियार हो गए 

गुनाहों ने मिल जब आपसी सौदा किया 
कुछ मुवक्किल रहे कुछ सरकार हो गए 

गुनाहों को गुनाहों से गंध आने लगी जब 
कुछ बर्बाद हुए कुछ खिदमतगार हो गए 

एक एक गुनाह जो सकून छीन लेता था 
जैसे ही छोड़ा वैसे ही सलाहकार हो गए 

गुनाहों का बोझ हमारे ही अख़्तियार था  
जिम्मेवारी ली और खुद मुख्तियार हो गए

गुनाहों को छोड़ ज़िन्दगी बसर करने लगे 
वही तो हैं ‘पाली’ जो खुद निस्तार हो गए 

Poet; Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

Saturday, 18 March 2017

A-249 जिंदगी 3.3.17--7.41 AM

A-249 जिंदगी 3.3.17--7.41 AM 

जिंदगी कितनी संघर्ष शील है  
हर किसी की अपनी दलील है 
कोई ढूंढता है रास्ते आसां हों 
कोई मुश्किलों संग जलील है 

सारे मुकाम इरादों से जुड़े हैं 
इरादों और संवादों से जुड़े हैं 
इनमें कहीं भी विवाद नहीं है 
नहीं है तो बस हंकार नहीं है 

मजबूरी से रिश्ता तोड़ लिया है
उम्मीदों से रिश्ता जोड़ लिया है
इरादा तो उम्मीदों का सिला है 
हर मुकाम भी इरादों से मिला है

न समझ मुझे कि मैं कमजोर हूँ 
हिमायती मैं अदब का पुरजोर हूँ 
छोटे और बड़े मुझे सभी मिले हैं 
मौन को छोड़ संवादों में मिले हैं 

जो अपने हैं वो भी अपने नहीं हैं 
गर उनके सपने भी सपने नहीं हैं 
उनके सपनों से मुझे पंख मिले हैं 
उड़ान के कारण असंख्य मिले है 

जब भी उनसे मेरा संवाद नहीं है 
तो आपसी रिश्ता व प्यार नहीं है 
जब कभी प्यार के फूल खिले हैं 
वो सारे केवल संवादों के सिले हैं 

संवाद करते नहीं हमें तो गरूर है 
हुकूमत भी करनी सुनाना जरूर है 
बिना संवाद सिर्फ अवसाद मिले हैं 
संवाद के राज बिन फसाद मिले हैं  


Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

Thursday, 16 March 2017

A-253 थोड़ा सब्र करो 15.3.17--7.35 AM

A-253 थोड़ा सब्र करो  15.3.17--7.35 AM

ऐसी भी क्या जल्दी थोड़ा सब्र करो 
खुद को भी थोड़ा करीब आने तो दो 
इतनी दूर चले जाने की तुम सोच रहे 
भरोसा भी करो मुझे पास आने तो दो 

सफ़र कट जाता सुनने सुनाने में 
मिल लेते हम साथ निभाने तो दो 
पल दो पल का मिलन भी हो जाता 
जिस पल की तरस उसे आने तो दो 

साथ हमने भी तुमको ले लिया होता 
अपनी कहानी को बीच में आने न दो 
वक़्त कट गया होता किसी रूहानी में  
सुनने सुनाने का चलन चलाने तो दो 

बिना हम सफ़र बात कोई कैसे करे 
साकी को जाम भर के लाने तो दो 
सफ़र कट जाये और सुहाना भी हो
बात मयख़ाने की करीब आने तो दो 

कुछ बात भी करो थोड़ी गुफ़्तगू भी हो 
थोड़ा साकी थोड़ी जुस्तजू आने तो दो
थोड़ी मयख़ाने में सही इक नज़्म तो हो 
दूसरे दर्जे की सही रस्म हो जाने तो दो

कुछ बेवज़ह चली आती है आने भी दो 
कुछ छिपना चाहती है छिप जाने तो दो 
कुछ बातें दबी रहें तो अच्छी लगतीं हैं 
फिर भी दबी हुई में निख़ार आने तो दो 

थोड़ा जरुरी है कभी ग़मज़दा हो जाना  
सच जरुरी है उसको उभर आने तो दो 
ग़मज़दा होना सच्चाई को ही नसीब है 
हँसने मुस्कुराने को सिमट जाने तो दो 

बातों बातों में शक़ न करो हसीनों पे 
इन की अदा है इनको शर्माने तो दो 
इन के भेद-भेद न रह पायेंगे ‘पाली’ 
शम्मअ थोड़ी रोशन हो जाने तो दो 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali’

Monday, 13 March 2017

A-251 मेरा रक़ीब 13.3.17--7.00 AM

A-251 मेरा रक़ीब 13.3.17--7.00 AM

मुझे मेरे रक़ीब से प्यार हो गया 
महबूबा मेरी का वो यार हो गया 
ख़ुशबू उससे भी मुझे आने लगी 
मेरा प्यार एक इश्तिहार हो गया 

जब भी मिलूँ एक ज़िक्र होता है 
उस ज़िक्र में एक फ़िक्र होता है 
फ़िक्र भी ऐसा जो फ़िक्र नहीं है 
फिर भी फ़िक्र का ज़िक्र होता है 

बड़ा मासूम है मेरा मासूम रक़ीब 
हर बात दिल की मुझे पिरोता है 
उसके हर पल की ख़बर होती है 
मुझे भी उसका ही फ़िक्र होता है 

जब आता है नयी ख़बर लाता है 
हर बार उसकी ही बात सुनाता है 
बहुत सुकून होता है उस ख़बर में 
जैसे मुसकुराता है और बताता है

बड़ा अपना सा लगने लगा है मुझे 
कभी कभी भ्रम भी चला आता है 
क्या वाक़ई प्यार करने लगा हूँ मैं 
या कि मेरे यार की ख़बर लाता है 

उस ख़बर में उसकी तस्वीर होती है 
हर ज़र्रे में मोहब्बत की हीर होती है 
मेरी हीर को सलामत रखना खुदा 
क्यों कि हीर में तेरी तस्वीर होती है 

तस्वीर मुकम्मल हो बहुत ज़रूरी है 
तस्वीर की भी अपनी ही मजबूरी है 
तस्वीर अधूरी किसी काम की नहीं 
तस्वीर पूरी हो तो भटकन गरूरी है 

भटकन ने खो दिया अपनी हीर को 
क्यों दोष देता है अपनी तकदीर को 
नज़र मार कर देख अपने जमीर को 
मिल जायेगा दर्द जो दिया हीर को 

वो आज भी तुम्हारी है रुख बदला है 
उसने केवल अपना चलन बदला है 
उसकी भी कोई मज़बूरी रही होगी 
तभी तो उसने केवल कवच बदला है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’