गुनाहों का बोझ ज़िंदगी बेफ़ायदा हो गयी
गुनाह माफ़ किये ज़िंदगी कायदा हो गयी
जिंदगी के आने से गुनाह दरकिनार हो गए
कुछ रफ़ू चक्कर हुए कुछ मददगार हो गए
गुनाहों की आपसी गुफ़्तगू का ये आलम
कुछ मचलने लगे कुछ अख्तियार हो गए
गुनाहों ने मिल जब आपसी सौदा किया
कुछ मुवक्किल रहे कुछ सरकार हो गए
गुनाहों को गुनाहों से गंध आने लगी जब
कुछ बर्बाद हुए कुछ खिदमतगार हो गए
एक एक गुनाह जो सकून छीन लेता था
जैसे ही छोड़ा वैसे ही सलाहकार हो गए
गुनाहों का बोझ हमारे ही अख़्तियार था
जिम्मेवारी ली और खुद मुख्तियार हो गए
गुनाहों को छोड़ ज़िन्दगी बसर करने लगे
वही तो हैं ‘पाली’ जो खुद निस्तार हो गए
Poet; Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’
Excellent
ReplyDeleteThank You So Much Sir!
Delete