Wednesday 22 March 2017

A-255 गुनाहों के बोझ 22.3.17--9.53AM

A-255 गुनाहों के बोझ 22.3.17--9.53AM 

गुनाहों का बोझ ज़िंदगी बेफ़ायदा हो गयी 
गुनाह माफ़ किये ज़िंदगी कायदा हो गयी 

जिंदगी के आने से गुनाह दरकिनार हो गए 
कुछ रफ़ू चक्कर हुए कुछ मददगार हो गए 

गुनाहों की आपसी गुफ़्तगू का ये आलम 
कुछ मचलने लगे कुछ अख्तियार हो गए 

गुनाहों ने मिल जब आपसी सौदा किया 
कुछ मुवक्किल रहे कुछ सरकार हो गए 

गुनाहों को गुनाहों से गंध आने लगी जब 
कुछ बर्बाद हुए कुछ खिदमतगार हो गए 

एक एक गुनाह जो सकून छीन लेता था 
जैसे ही छोड़ा वैसे ही सलाहकार हो गए 

गुनाहों का बोझ हमारे ही अख़्तियार था  
जिम्मेवारी ली और खुद मुख्तियार हो गए

गुनाहों को छोड़ ज़िन्दगी बसर करने लगे 
वही तो हैं ‘पाली’ जो खुद निस्तार हो गए 

Poet; Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

2 comments: