ऐसी भी क्या जल्दी थोड़ा सब्र करो
खुद को भी थोड़ा करीब आने तो दो
इतनी दूर चले जाने की तुम सोच रहे
भरोसा भी करो मुझे पास आने तो दो
सफ़र कट जाता सुनने सुनाने में
मिल लेते हम साथ निभाने तो दो
पल दो पल का मिलन भी हो जाता
जिस पल की तरस उसे आने तो दो
साथ हमने भी तुमको ले लिया होता
अपनी कहानी को बीच में आने न दो
वक़्त कट गया होता किसी रूहानी में
सुनने सुनाने का चलन चलाने तो दो
बिना हम सफ़र बात कोई कैसे करे
साकी को जाम भर के लाने तो दो
सफ़र कट जाये और सुहाना भी हो
बात मयख़ाने की करीब आने तो दो
कुछ बात भी करो थोड़ी गुफ़्तगू भी हो
थोड़ा साकी थोड़ी जुस्तजू आने तो दो
थोड़ी मयख़ाने में सही इक नज़्म तो हो
दूसरे दर्जे की सही रस्म हो जाने तो दो
कुछ बेवज़ह चली आती है आने भी दो
कुछ छिपना चाहती है छिप जाने तो दो
कुछ बातें दबी रहें तो अच्छी लगतीं हैं
फिर भी दबी हुई में निख़ार आने तो दो
थोड़ा जरुरी है कभी ग़मज़दा हो जाना
सच जरुरी है उसको उभर आने तो दो
ग़मज़दा होना सच्चाई को ही नसीब है
हँसने मुस्कुराने को सिमट जाने तो दो
बातों बातों में शक़ न करो हसीनों पे
इन की अदा है इनको शर्माने तो दो
इन के भेद-भेद न रह पायेंगे ‘पाली’
शम्मअ थोड़ी रोशन हो जाने तो दो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali’
Excellent
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