मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई
मेरा दुःख न जाने कोई
अँखियों में नीर भर सोई
बातें सखिओं को बताई
मेरी हुई फिर जग हसांई
मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई
अँखियाँ भी मैंने बिछाई
आँखों में नीर भर लाई
लोगों से छिपती छिपाती
घूँघट में छिप छिप आयी
मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई
मैं डरी थी बहुत घबराई
सखिओं से बात छिपाई
फिर भी नहीं आये बलमा
फिर हुई मेरी जग हंसाई
मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई
रात भर नींद न आयी
रैना बीती संग तन्हाई
मेरा दुःख मैं ही जानूँ
जब से अँखियाँ लड़ाई
मैंने रो रोकर उम्र गँवाई
बलमा निकला हरजाई
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali'
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