Saturday 30 September 2017

A-318 हम न रहे 25.9.17--5.15 AM

A-318 हम न रहे 25.9.17--5.15 AM

मेरा मुकद्दर था मेरी जिंदगी में तुम आये 
सुहानी जिंदगी का आना जाना तो रहेगा 

हम न भी रहे तो क्या ये ज़माना तो है 
क़िस्से कहानियाँ अफ़साना तो रहेगा 

तुम न भी बुलाओ अपनी आवाज़ देकर 
तेरी इंतज़ार में सही ये दीवाना तो रहेगा 

तुम न मिलो तेरी तदबीर हो सकती है 
मगर तेरे आँसूओं से टकराना तो रहेगा 

हम क़द्रदान रहे और तेरे रहेंगे सारी उम्र 
रूठ भी जाओ याद का आना तो रहेगा 

अपनों से रिश्ते भला कब कहाँ टूटते हैं 
ज़ख्मों का रिसना और आना तो रहेगा 

बहते हुए ज़ख्मों को जब भी देखेंगे हम 
उनके इर्द गिर्द होने का बहाना तो रहेगा 

कहते हो भूल जाऊँ कितने मासूम हो 
तेरी फ़ितरत का ये नज़राना तो रहेगा 

मत कर गिला शिकवा इन हसीनों से 
इनकी फ़ितरत है ये हर्ज़ाना तो रहेगा 

इनके तीरों की दिशा बदल सकती है 
मगर इन तीरों का ठिकाना तो रहेगा 


 Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 28 September 2017

A-319 तेरे पहलू में 28.9.17--10.34 PM

A-319 तेरे पहलू में 28.9.17--10.34 PM

तेरे पहलू में आकर दम तोड़ दिया 
वो रिश्ता वो नाता सब छोड़ दिया 
न रहा मैं न रहा मेरा मुसव्विर कोई 
हमने तो हक़ जताना भी छोड़ दिया 

मुहब्बत की दास्ताँ किसको सुनाते 
अपनों के बीच जाना ही छोड़ दिया 
गिले शिकवे तो मीलों बिछड़ गए हैं  
हमने तो प्यार जताना भी छोड़ दिया 

सारी उम्र न छोड़ेंगे तेरा दामन कभी 
ये वायदा था पर निभाना छोड़ दिया
तेरे पल्लू से चिपके रहे हम उम्र भर
उम्र भर का अफसाना भी छोड़ दिया 

मज़हब के गीत बहुत गाया करते थे  
यूँ तो हमने गुनगुनाना भी छोड़ दिया 
हसरतें बहुत थी दिल में अभी बाक़ी 
यूँ तो मिलना मिलाना भी छोड़ दिया 

एक तमन्ना है तू मिल जाये जो कहीं 
तो पूछूँ कि मुस्कुराना क्यों छोड़ दिया 
क्या हम एक अदद ही काफी नहीं थे 
तो रिश्तों को निभाना क्यों छोड़ दिया 

सब्र कर ले "पाली" फल मीठा होता है 
हमने तो भरोसा जाताना भी छोड़ दिया 
यूँ ही निकल पड़े थे राह चलते चलते 
मंज़िल के डर से जाना ही छोड़ दिया 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”



Sunday 24 September 2017

A-316 पल पल की ख़बर 23.9.17--9.47 PM

A-316 पल पल की ख़बर 23.9.17--9.47 PM

पल पल की ख़बर ने पल पल को निहारा है 
यहाँ कौन जीता है और कौन कौन हारा है 
किसकी मुक़द्दर का तारा धूमिल हो रहा है 
किसका हो रहा है इस जगत से किनारा है 

यह कौन सा दीपक है जो सकपका रहा है 
कभी ज्वलित होता है कभी बुझा जा रहा है 
किसको ढूँढ़ता है और किसको बुला रहा है 
अब सांसों की गिनती किसको गिना रहा है 

मुक़द्दर से चले आए थे बन के सावन तुम 
सावन को देखो किस तरह मुस्कुरा रहा है 
दिखता नहीं इसको कि अंतिम घड़ी भी है 
अंतिम घड़ी का काँटा सबको चिढ़ा रहा है 

मुकद्दर का खेल था तुम से मोहब्बत हुई 
मोहब्बत का वो हर पल याद आ रहा है 
मिलन का दास्ताँ बनी जुदाई का सबूत 
हर शख्श को देखो मुझे समझा रहा है 

सावन के अंधे को दिखता नहीं है सूखा 
देखो वो भी अपना करिश्मा बता रहा है 
टुकड़ों में जिसने जिया मुक़द्दर वो सारा 
आज हर किसी को करतब दिखा रहा है 

बड़ी लम्बी फ़ेहरिस्त है तेरे ज़माने की 
हर दाखला किसी का नग़्मा गा रहा है 
एक नग़्मे की तान तो मैंने भी छेड़ ली  
हर नग़्मा अब आँसूं बन कर आ रहा है 

यूँ ही न छेड़ किसी नग़्मे की तान कोई 
हर रग का खून थोड़ा सिमटा जा रहा है 
रफ़्तार धीमी रख थोड़ी सी और "पाली"
अब इशारा समझ वो मरता जा रहा है 
…………………….वो मरता जा रहा है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 14 September 2017

A-315 एक तारा खो गया 14.9.17--12.56 AM


आज आसमान में एक तारा खो गया 
कैसे ढूँढू ज़िन्दगी का इशारा खो गया 
कहाँ से लाऊँ बड़े मज़हब से ढूँढते रहे 
आसमां की छत का किनारा खो गया 

देखा था उसे समन्दर की लहरों में भी 
लहरों के खुद का भार सारा खो गया 
उछलती कूदती बेकाबू सी होने लगीं 
जैसे सारा जहां उनका हमारा हो गया 

किस को बतायूँ अपने दिल की बात 
ज़िंदगी का मंझर वो नज़ारा खो गया 
जिसकी खातिर जिया करते थे कभी 
आज उसी से अपना किनारा हो गया 

उतर भी जाते समंदर के गहरे तल पर 
धीरे धीरे समंदर का किनारा खो गया 
छल ने छल से पैंतरा ही  बदल डाला 
भरोसे में भरोसे का भ्रम सारा खो गया 

किनारे पर बैठकर यूँ ढूँढ़ता रहा “पाली” 
जैसे किसी का दर्द अब हमारा हो गया 
उनके जाने का ग़म इतना कभी न हुआ 
जितना आने से वो ग़म हमारा हो गया 

आज आसमान में एक तारा खो गया 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

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Wednesday 6 September 2017

A-314 चलो आज हम 9.8.17--1.58 PM


A-314 चलो आज हम 9.8.17--1.58 PM

चलो आज हम तनहा हो जाएं 
एक दूसरे के राजों में खो जाएं 
ज़माने से अश्कों को देखा नहीं 
आज उसके भी रूबरू हो जाएं 

अश्क़ों से ही ज़िंदगी तामील है 
थोड़ा सा उनका भी क़र्ज़ चुकाएं 
मिल लेते मौका मिला है सज़ग 
जाने गम आये कि फिर न आएं 

क़र्ज़ चुकाने की रवायत भी खूब 
बिसरी यादों के गम भी आ जाएं 
आखों में नमी सहज़ मचलने लगे 
लाख चाहें कि उसको भुला पाएं

सकून मिल जाता उसके आने से 
मुमकिन है वो हर बार चले आएं 
सरक ही जाते हैं गालों पर कहीं 
यादों के तीर जो चुभन छोड़ जाएं 

मुलाकात हो जाये जो उनसे कभी 
अधर पर हम मुस्कान भी ले आएं 
अश्क भी कहाँ रुकते हैं रोकने से 
जितना रोको उतनी जबरन आएं 

चलो आज हम तनहा हो जाएं 
एक दूसरे के राजों में खो जाएं 
ज़माने से अश्कों को देखा नहीं 
आज उसके भी रूबरू हो जाएं 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia





Saturday 2 September 2017

A-310 बड़ी तमन्ना थी 18.8.17--9.21 AM

A-310 बड़ी तमन्ना थी 18.8.17--9.21 AM

बड़ी तमन्ना थी कि लोग मुझे जाने 
जानें मेरा नाम मेरे काम से पहचाने 
समंदर के बीच हज़ारों मछलियाँ हैं 
इक बार तो हो जाएं सब मेरे दीवाने 

जब खुद को इस ऊँचाई पर पाया 
जहाँ तक सोचा, वहां तक आया 
कहीं कहीं थोड़ा सकून था मन में 
कहाँ छोटा पप्पू कहाँ ये सरमाया 

पर मैं अब थोड़ा सा उलझ गया हूँ 
नाम का मतलब भी समझ गया हूँ 
कीमत इसकी भी चुकानी पड़ती है 
उसकी ज़िम्मेवारी उठानी पड़ती है 

चिंता है कि अब कहाँ तक जाना है 
इस दायरे को कहाँ तक बढ़ाना है 
मेरी पहुँच से ये बाहर होने लगा है 
यह सब अब किसको दिखाना है 

यह सब अब ये मेरे बस का नहीं है 
उलझन है कम पर बढ़ तो रही है 
दायरा सचमुच बड़ा होने लगा है
थोड़ा फ़िक्र भी अब पिरोने लगा है 

दायरा अब मैं छोटा करना चाहता हूँ 
डरता मैं जरा भी नहीं मैं जताता हूँ 
लोग कहेंगे देखो डर सताने लगा है 
इस बात का डर आड़े आने लगा है 

दायरा अब वाकई छोटा हो रहा है 
थोड़ा सा रुको मुझे कुछ हो रहा है 
नहीं नहीं अब और छोटा मत करो 
पर सब कुछ अपने आप हो रहा है 

अरे रोको इसे नहीं तो मर जायूँगा 
दुनिया को क्या मैं मुँह दिखायूँगा 
इसकी ख़ातिर सारे रिश्ते छोड़े थे 
अपने लोगों से सम्बन्ध भी तोड़े थे 

अब मुझे वो सच नज़र आ रहा है 
अहमियत रिश्तों की दिखा रहा है 
क्यों संग रहे पाली इस माहौल के 
मिलते नहीं रिश्ते पैसों से तौल के 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia