A- 179 कुछ भी तो पुराना नहीं 16.9.16—5.46 AM
कुछ भी तो पुराना नहीं तो कैसे मैं अट्हास करूँ
किसकी मैं बात करूँ और कैसे मैं विश्वास करूँ
किसको मैं याद करूँ और किसकी मैं बात करूँ
कौन सी कहानी कहूँ ताकि मैं भी परिहास करूँ
जिसमें कोई आन नहीं हैं जिसमें कोई शान नहीं
जिसमें कोई इन्सान नहीं अपनों की पहचान नहीं
जहाँ जान पहचान नहीं कैसे मैं उसको यार कहूँ
किसके संग मैं रात रहूँ जिसको भी मैं प्यार करूँ
जहाँ कोई माँग नहीं हमारे कुछ दरमियान नहीं है
किसको जज्बात कहूँ मेरा कोई इम्तिहान नहीं है
कैसे कोई गीत गाऊँ जिसका कोई आधार नहीं है
मैं भी अब कैसे मुस्करायूँ अदद कोई राज़ नहीं है
जहाँ कुछ भी पुराना नहीं वहाँ कतई प्यार नहीं है
जिद्द ज़िल्लत नहीं है तो वहाँ कोई इज़हार नहीं है
खुल कर निखरना है तो कुछ ढूँढ कर लाना होगा
गिलों शिकवों के साथ ही प्यार को जाताना होगा
Poet: Amrit pal Singh Gogia “Pali”
Beautiful poetry a resentment expressed in poetic lines !
ReplyDeleteThank you so much for your comments and wonderful expression!
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