Wednesday 7 March 2018

A-354 पैमाना 7.3.18—4.00 AM

A-354 पैमाना 7.3.18—4.00 AM 

क्यों नहीं रोक पाता ख़ुद को 
जब भी तेरा पैग़ाम आता है 
जाने कैसी क़शिश है तुझमें 
जैसे पैमाने को जाम भाता है 

जब भी चाहते बुला लेते हो 
जैसे आशिक़ बहक जाता है 
हम भी तो दौड़े चले आते हैं 
जब भी तेरा ज़िक्र आता है 

तेरे प्यार का अदब हावी है 
तेरा रुख़्सार नज़र आता है 
शिक़वे रुख़्सत हो जाते है 
जब भी प्यार नज़र आता है 

तेरे रुख़्सार पर दाग़ ढूँढता हूँ 
कैसी दीवानगी नज़र आता है 
मेरी चाहत का माप डंड भी है 
कभी कभी पनप भी जाता है 

वादा ख़िलाफी न हो मुझसे 
ऐसा इल्म अक्सर सताता है 
यह मेरा पागलपन ही तो है 
दिल दीवाना गज़ब ढाता है 

मुझे जो भी समझ आता है 
लोगों को क्या दिख जाता है 
सारे रहनुमा बन कर देख रहे  
भला शैदाई किधर जाता है 

हम नहीं रुक पाते तो न सही 
तो उनका उज्र क्यों आता है 
कभी प्यार किया हो तो जाने 
पैमाना ही है छलक जाता है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

5 comments:

  1. बेपनाह मोह्बत का एक ही उसूल है,
    मिले या ना मिले तू हर हाल में क़बूल है।

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  2. बेपनाह मोह्बत का एक ही उसूल है,
    मिले या ना मिले तू हर हाल में क़बूल है।

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  3. Thank you so much! Arora saheb for you appreciation! Gogia

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