एक सवाल बार बार आ रहा है
क्या हुआ सबको चौंका रहा है
कोई तो है जो खेल खेल रहा है
उठा उठा उनको दंड पेल रहा है
किसी को बड़ी उम्र का बताकर
किसी की बिमारी में उलझाकर
किसी को प्यार में रगड़ता चल
किसी को झगड़ों से चलता कर
किसी ने नज़रों से नज़रें चुराई
किसी ने दिल को ठेस पहुंचाई
कोई बन गया आवारा बादल है
कोई किसी का प्यारा पागल है
कुछ घट रहा है तुम सो रहे हो
तुम अपना अस्तित्व खो रहे हो
घंटी बजाने से पूज्य नहीं होगा
बेचैनी बढ़ाने से कुछ नहीं होगा
हर उम्र का अपना ही पड़ाव है
समझ लेना उसका ठहराव है
जब जब तुम ऐतराज़ करोगे
अपने ज़िन्दगी बर्बाद करोगे
मन की बेचैनी बढ़ती जाएगी
क्या हुआ समझ नहीं आएगी
जो आया है उसको आने दो
उसको अपनी जगह बनाने दो
दर्द का तुमसे खास रिश्ता है
दर्द को अपना फ़र्ज़ निभाने दो
जब दर्द को जगह मिल जाएगी
ज़िंदगी नर्क से स्वर्ग बन जाएगी
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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