Sunday 5 August 2018

A-383 बहके बहके क़दम 24.7.18--1.27 AM

A-383 बहके बहके क़दम 24.7.18--1.27 AM 

बहके बहके क़दम ठुमक ठुमक आते हैं 
कभी आँखों में रहते कभी सरक जाते हैं 
कभी पलकों पर बैठ देखते हैं इधर उधर 
कभी चेहरे पर सँवर और कभी मंडराते हैं 

कभी आँखों में जलन कर बहक जाते हैं 
कभी लाली बन आँखों में सिमट जाते हैं 
कभी परदे में रहकर खुद को कचोटते हैं 
कभी बेनक़ाब होकर खुद बिखर जाते हैं 

इनकी मुस्कुराने की अदा भी निराली है 
नहीं चाहते हुए भी ये छलक ही जाते हैं 
चेहरे पर हया गालों की पसीजती लाली 
ठण्डी सी तासीर बन कर चिपक जाते हैं 

बड़े बे हया हैं आती नहीं है शर्म इनको 
न बुलाओ इनको फिर भी चले आते हैं 
न ज्यादा दोस्ती न इनसे दुश्मनी अच्छी 
दोनों ही अदबों के संग बहुत पछताते हैं 

गुमां सा होने लगा है इनकी तरतीब पर 
मेरे अपने हैं या रहना ये जुदा चाहते हैं 
नहीं रहा भरोसा इनका मुझे अब कोई 
जब दिल करता है तभी बिफर जाते हैं 

कभी बाढ़ बनकर बिखरते इधर उधर 
कभी मायूसी में सिमटकर तरसाते हैं 
तमन्ना होती है पाली कि निकल जाएं 
पर इतनी सी बात नहीं समझ पाते हैं 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

1 comment:

  1. वो तो पानी की बूंद है जो आंखों से बह जाए,
    आंसू तो वो है जो टपक के आंखों में रह जाये,
    वो प्यार क्या जो लफ्जो मैं बायां हो ?
    प्यार तो वो है जो आंखों में नजर आए।

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