Sunday 19 August 2018

A-388 नग्नता 20.8.18--4.12 AM

आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 
एक एक दिन को सींचा था बेदर्दी 
सपने संजोए थे सारे चकनाचूर हुए 

आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 

कोई भी नहीं जिसको अपना कहूँ 
दर्द दिल का इतना भला कैसे सहूँ 
माँ क्यों सिखाया मुझे कि दृढ़ रहूँ 
तू ही बता खून भरे आंसू कैसे सहूँ 

आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 

जानता था कि मैं अच्छा इन्सान हूँ
टूट गए भ्रम मेरे सच है मैं हैवान हूँ
सुनता तो मैं किसी की भी नहीं हूँ 
पर यही सुनकर तो मैं भी हैरान हूँ 

आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 

माँ मुझे तो लोगों ने आकर बताया 
कि मैं कमीना भी हूँ मुझे समझाया 
बहुत आरोप लगे सबने मुझे हराया 
नग्नता देखकर मैं भी बहुत घबराया 


आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 

मेरी सारी दुनिया तहस-नहस हुई 
खूनखराबा के संग जद्दोजहद हुई
माँ आज मुझे सिर्फ इतना बता दे 
क्यों स्थिति फिर भी न सहज हुई 

आज दुःख हुआ जब अपने दूर हुए 
हम तन्हा हुए हम बहुत मज़बूर हुए 

Poet: Amrit Pal Singh “Gogia”


4 comments:

  1. मानव जज़्बात की तर्ज़ ओर जीवन की उथल पुथल का कविता माध्यम बना बहुत खुब !! गोगीया साहिब !!

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. बहुतखूब आप का अंदाज़े बयाँ वाक़ई बहुत ही खूबसूरत है
    एक बार आप फिर बधाई के पात्र हैं।

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    1. Thank you so much Arora Saheb for your appreciation!

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