Saturday 4 August 2018

A-381 मैं वोट बैंक हूँ 26.7.18--4.29 AM

A-381 मैं वोट बैंक हूँ 26.7.18--4.29 AM 

मैं वोट बैंक हूँ लेकिन हर पाँच साल के बाद कंगाल हो जाता हूँ 
उनके एहसानों और क़र्ज़ों के तले दबकर मालामाल हो जाता हूँ 
ऐसा केवल मेरे ही साथ होता है क्या या मैं ही समझ नहीं पाया 
वोट से पहले मैं बहुत अपना था फिर क्यों मैं अशिष्ट हो जाता हूँ  

वोट से पहले उनकी मीठी मीठी बातें वो वायदे आज भी याद हैं 
पड़ोसी भी बहुत दावे करते हैं फिर मैं क्यों शक़ से घिर जाता हूँ 
उनकी हर छोटी सी मुलाकात करिश्मा करामात लगने लगती है 
मंत्री बनते ही वो मशगूल हो जाते और मैं खुद में सिमट जाता हूँ 

नहीं चाहिए मुझे ऐसी राजनीति जहाँ आकर मैं उलझ जाता हूँ 
मैं कितना विवश हूँ कि कभी कभी उनको मात्र बदल पाता हूँ 
हर कचरे में एक नेता छिपा बैठा है आज अज़गर साँप बनकर 
इतने शातिर हैं वो कि जिनको मैं कभी भी नहीं समझ पाता हूँ 

दूर दृष्टि मुझे रखनी चाहिए अब यह बात थोड़ी समझ पाता हूँ 
कहीं मन में मेरे भी चोर छुपा बैठा है अपने मतलब साधने को 
वरना एक ही सिक्के के दो पहलुओं को क्यों नहीं ठुकराता हूँ 
कुछ तो मेरी भी मिली भगत है इसीलिए तो मैं भी मार खाता हूँ 

अंधों के बीच काना राजा की कहावत तो तुमने भी सुनी होगी 
हर बार मैं भी तो उसी झुण्ड से इनको स्वयं चुन कर लाता हूँ 
मैं चाहता हूँ पाली कि परिवर्तन हो जाये इस बार प्रणाली में 
ऐसा कैसे होगा यह सोचकर ही मैं थोड़ा विचलित हो जाता हूँ 

मैं वोट बैंक हूँ लेकिन हर पाँच साल के बाद कंगाल हो जाता हूँ 
उनके एहसानों और क़र्ज़ों के तले दबकर मालामाल हो जाता हूँ 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


10 comments:

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    1. Thank you so much for your appreciation. It could have been better if you could have mentioned your name. Please

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  2. यथार्थ का बेह्तरीन चित्रण। आप को बधाई ।

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    1. Thank you so much Arora saheb! I appreciate your love for my poetry. Thanks again

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  3. नागरिकता सुक्षम आधार का निरन्तर ख़तरा कही ज़्यादा कही पुरा ख़त्म ! कवी को स्पष्ट नजरसानी है !

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    1. Thank you so much manjit Ji! for your worthy comments! I appreciate!

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