कोयल……………!
तूँ किसको पुकारती है, तूँ किसको निहारती है
वहाँ कौन छुपा बैठा है, कू कू करती भागती है
क्यूँ छुपकर बैठ जाती है, शर्म तुमको क्यों आती है
पत्तों से क्यों घिर जाती है, किस बात से तूँ घबराती है
मँझर से तेरा क्या रिश्ता है, आम क्या तेरा फ़रिश्ता है
और मौसम क्यूँ भाते नहीं, औरों संग क्यों जाती नहीं
ताक झाँक तूँ करती है, टुक टुक इशारे करती है
किसको तूँ ढूँढा करती है, किसके प्यार में मरती है
तेरा अपना कोई घर नहीं, सरदियाँ कैसे गुजरती हैं
सर्द हवाओं के झोकों में, किसके घर तूँ चहकती है
दूसरे घरों में घुस जाती है, अंडे कैसे रखकर आती है
अपने दिल के टुकड़े तूँ, कैसे वहाँ छोड़ आती है
हे इंसान। ........ न हो तूँ परेशान
न देख हमें, न हो हैरान, देखने के तरीके तेरे अपने हैं
तेरी ज़िंदगी में सिर्फ अधूरे सपने हैं
न कोई बंधन है न कोई रिवाज़ है
हम पंछी हैं! हम आज़ाद है!
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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